स्वामी विवेकानंद ने भारत के प्रति क्या परोपकार किये थे?
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“परोपकार में हमारा ही उपकार है” स्वामी विवेकानंद की लोकप्रिय पुस्तक “कर्मयोग” का पाँचवाँ अध्याय है। इसमें स्वामी जी बता रहे हैं कि परोपकार से दरअस्ल हमारा ही भला होता है और हमारी आध्यात्मिक उन्नति होती है। संसार का हित करने की शक्ति हममें नहीं है। परहित वस्तुतः आत्महित ही है।
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गरीबों और दबे-कुचलों की सेवा उनके जीवन का लक्ष्य था। यही कारण है कि वे पहले हिन्दू मिशनरी कहे जाते हैं। उनका मूल संदेश यह था कि जाति, वर्ग या लिंग के भेद के बिना, सभी की सेवा की जाए। वे मानते थे कि हर मनुष्य में ईश्वर का वास है।
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