Hindi, asked by Priyanka2527, 1 year ago

स्वामी विवेकानंद पर निबंध | Write an essay on Swami Vivekananda in Hindi

Answers

Answered by cutipierishu
24
hey mate here's your nibandh
Attachments:
Answered by coolthakursaini36
27

                                  “स्वामी विवेकानन्द सरस्वती ”  

भारत की इस धरा पर अनेक बुद्धिमान, राष्ट्रभक्त, समाजसेवी तथा धर्मज्ञ पैदा हुए I उनमें से एक थे स्वामी विवेकानंद सरस्वती जी I

जन्म ;->उनका जन्म कलकता के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1868 को हुआ था I उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था I विवेकानंद के 9 भाई बहन थे I उनके पिता कलकता हाई कोर्ट में वकील थे, उनके दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत व फारसी के प्रकांड विद्वान थे, उन्होंने पच्चीस वर्ष की उम्र में संन्यास ग्रहण कर लिया था Iपरिवार के अच्छे विचार व परवरिश के कारण विवेकानंद को सोच और नई दिशा मिली I

उनके बचपन का नाम नरेंद्र था, वे बहुत ही कुशाग्र बुद्धि व नटखट थे Iउनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत के किस्से सुनाया करती थी I

शिक्षा:-.अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार से प्रभावित उनके पिता उन्हें अंग्रेजी की शिक्षा देना चाहते थे पर नरेंद्र की संस्कृत और अध्यात्मिक के प्रति गहरी आस्था थी, उन्होंने साथ साथ इसका भी अध्ययन किया I सन 1884 में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उतीर्ण की I असेम्बली कालेज के अध्यक्ष विलियम हेस्टी का कहना था कि नरेंद्र जैसा दर्शन शास्त्र में मेधावी छात्र और नहीं हैI

हिन्दू समाज के संस्कारों के मुताबिक उन्हें परमात्मा को पाने की चाह बचपन से थी I डेकार्ड का अह्म्वाद, डार्विन का विकासवाद, स्पेंसर का अद्वेतवाद को सुनकर वो सत्य पाने को बेचैन हो गए I वह उस समय के प्रसिद्ध संत रामकृष्ण परमहंस के पास गए उनके विचारों से प्रभावित हिकार उनको गुरु मान लिया I अपना नाम नरेंद्र से विवेकानंद कर लिया तथा 25 वर्ष की उम्र में गेरुवा वस्त्र धारण कर लिया और विश्व भ्रमण पर निकल पड़े I  

स्वामी के सुविचार:->उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये I ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका अबिष्कार करता है I जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगो से कहो-उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस और ध्यान मत दो I दुर्वलता को कभी श्रय मत दो I सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यों के लिए यदि अधिक मात्रा में प्रखर होती है,और उन्हें बहा ले जाति है,तो ले जाने दो-वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है I ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है I सभी जीवंत ईश्वर हैं-इस भाव से सबको देखो I मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवंत काव्य है I जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिमान हैं I    

मानव देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवम् मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत से सम्पूर्णतया बाहर हो सकते हैं-

मृत्यु:-> स्वामी जी के विचार और सिद्धांत पूरे जगत में प्रसिद्ध हैं I जब वो अपने जीवन के अंतिम दौर में थे, एक दिन यजुर्वेद की व्याख्या में कहा “एक और विवेकानंद चाहिए, यह समझाने के लिए किइस विवेकानंद ने अब तक किया क्या है I” उनके शिष्यों के अनुसार मृत्यु वाले दिन भी स्वामी जी ने दिनचर्या के अनुसार दो तीन घंटे तक ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही महायोगी ने 4 जुलाई 1902 को महासमाधि ले ली


Similar questions