स्वार्थी चिडीया इस विषय पार कहानी लेखन किजीए
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एक बार की बात है, एक नदी किनारे एक पेड़ पर एक पक्षी रहता था जिसका नाम भरूनदा था। वह पक्षी अनोखा था क्योंकि उसके दो सिर मगर पेट एक ही था। एक दिन वह पक्षी झील के किनारे घूम रहा था की तभी उससे एक लाल रंग का फल मिला। वह फल देखने में बड़ा ही स्वादिस्ट लग रहा था। एक सिर ने बोला की “वाह! क्या फल है! लगता है की भगवान ने यह फल मेरे लिए भेजा है। में कितना भाग्यशाली हूँ।“ फिर वो सर उस फल को बड़ी प्रसन्नता से खाने लगा और खाते हुए उसकी प्रशंसा करने लगा।
यह सुन कर दूसरा सिर बोला “ओ प्यारे! मुझे भी यह फल चखने दो जिसकी तुम इतनी प्रशंसा कर रहे हो।“ इस बात पर पहला सिर हंसने लगा और बोला “जब हमारा पेट एक ही है तो कोई भी सिर यह फल खाये, यह फल तो उसी पेट में जाएगा ना। तो इस बात से कोई अंतर नहीं है की मैं फल खाऊ या फिर तुम और क्योंकि यह फल मुझे मिला है तो फल खाने का पहला अधिकार भी मेरा ही हुआ।“ इस बात को सुन कर दूसरे सिर को बहुत दुख हुआ और उसको पहले सिर का स्वार्थी होने पर गुस्सा भी आया।
फिर एक दिन दूसरे सिर हो एक पेड़ पर विषैले फल मिले। उसने वह फल ले लिए और पहले सिर से बोला “धोखेबाज! आज में विषैले फल खाऊँगा और फिर में अपने अपमान का तूझसे बदला लूँगा।“ इस पर पहला सिर बोला की कृपया वह विषैले फल ना खाये क्योंकि एक पेट होने हम दोनों की मार जाएंगे।“ इसपर दूसरा सिर बोला “चुप रहो! यह फल मुझे मिला है और इस फल को खाने का मेरा पूरा अधिकार है। इस पर पहला सिर रोने लगा मगर दूसरे सिर ने एक ना सुनी और वह विषैला फल खा लिया। इस की परिणाम सरूप दोनों सिरों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ा।
कहानी का अभिप्राय: हमें सदेव अच्छी चीज़ें दूसरो के साथ बांटनी चाहिए।
यह सुन कर दूसरा सिर बोला “ओ प्यारे! मुझे भी यह फल चखने दो जिसकी तुम इतनी प्रशंसा कर रहे हो।“ इस बात पर पहला सिर हंसने लगा और बोला “जब हमारा पेट एक ही है तो कोई भी सिर यह फल खाये, यह फल तो उसी पेट में जाएगा ना। तो इस बात से कोई अंतर नहीं है की मैं फल खाऊ या फिर तुम और क्योंकि यह फल मुझे मिला है तो फल खाने का पहला अधिकार भी मेरा ही हुआ।“ इस बात को सुन कर दूसरे सिर को बहुत दुख हुआ और उसको पहले सिर का स्वार्थी होने पर गुस्सा भी आया।
फिर एक दिन दूसरे सिर हो एक पेड़ पर विषैले फल मिले। उसने वह फल ले लिए और पहले सिर से बोला “धोखेबाज! आज में विषैले फल खाऊँगा और फिर में अपने अपमान का तूझसे बदला लूँगा।“ इस पर पहला सिर बोला की कृपया वह विषैले फल ना खाये क्योंकि एक पेट होने हम दोनों की मार जाएंगे।“ इसपर दूसरा सिर बोला “चुप रहो! यह फल मुझे मिला है और इस फल को खाने का मेरा पूरा अधिकार है। इस पर पहला सिर रोने लगा मगर दूसरे सिर ने एक ना सुनी और वह विषैला फल खा लिया। इस की परिणाम सरूप दोनों सिरों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ा।
कहानी का अभिप्राय: हमें सदेव अच्छी चीज़ें दूसरो के साथ बांटनी चाहिए।
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एक बार की बात है, एक नदी किनारे एक पेड़ पर एक पक्षी रहता था जिसका नाम भरूनदा था। वह पक्षी अनोखा था क्योंकि उसके दो सिर मगर पेट एक ही था। एक दिन वह पक्षी झील के किनारे घूम रहा था की तभी उससे एक लाल रंग का फल मिला। वह फल देखने में बड़ा ही स्वादिस्ट लग रहा था। एक सिर ने बोला की “वाह! क्या फल है! लगता है की भगवान ने यह फल मेरे लिए भेजा है। में कितना भाग्यशाली हूँ।“ फिर वो सर उस फल को बड़ी प्रसन्नता से खाने लगा और खाते हुए उसकी प्रशंसा करने लगा।
यह सुन कर दूसरा सिर बोला “ओ प्यारे! मुझे भी यह फल चखने दो जिसकी तुम इतनी प्रशंसा कर रहे हो।“ इस बात पर पहला सिर हंसने लगा और बोला “जब हमारा पेट एक ही है तो कोई भी सिर यह फल खाये, यह फल तो उसी पेट में जाएगा ना। तो इस बात से कोई अंतर नहीं है की मैं फल खाऊ या फिर तुम और क्योंकि यह फल मुझे मिला है तो फल खाने का पहला अधिकार भी मेरा ही हुआ।“ इस बात को सुन कर दूसरे सिर को बहुत दुख हुआ और उसको पहले सिर का स्वार्थी होने पर गुस्सा भी आया।
फिर एक दिन दूसरे सिर हो एक पेड़ पर विषैले फल मिले। उसने वह फल ले लिए और पहले सिर से बोला “धोखेबाज! आज में विषैले फल खाऊँगा और फिर में अपने अपमान का तूझसे बदला लूँगा।“ इस पर पहला सिर बोला की कृपया वह विषैले फल ना खाये क्योंकि एक पेट होने हम दोनों की मार जाएंगे।“ इसपर दूसरा सिर बोला “चुप रहो! यह फल मुझे मिला है और इस फल को खाने का मेरा पूरा अधिकार है। इस पर पहला सिर रोने लगा मगर दूसरे सिर ने एक ना सुनी और वह विषैला फल खा लिया। इस की परिणाम सरूप दोनों सिरों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ा।
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यह सुन कर दूसरा सिर बोला “ओ प्यारे! मुझे भी यह फल चखने दो जिसकी तुम इतनी प्रशंसा कर रहे हो।“ इस बात पर पहला सिर हंसने लगा और बोला “जब हमारा पेट एक ही है तो कोई भी सिर यह फल खाये, यह फल तो उसी पेट में जाएगा ना। तो इस बात से कोई अंतर नहीं है की मैं फल खाऊ या फिर तुम और क्योंकि यह फल मुझे मिला है तो फल खाने का पहला अधिकार भी मेरा ही हुआ।“ इस बात को सुन कर दूसरे सिर को बहुत दुख हुआ और उसको पहले सिर का स्वार्थी होने पर गुस्सा भी आया।
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कहानी का अभिप्राय: हमें सदेव अच्छी चीज़ें दूसरो के साथ बांटनी चाहिए।
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