स्वास्थ्य और स्वच्छता पर अंत
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मानव मल अपशिष्ट तरल तथा अपशिष्ट ठोस पदार्थों के सुरक्षित निपटान के लिए बेहतर प्रबंधन व्यक्तिगत व सामुदायिक स्वच्छता को बढ़ावा देता है जिससे की स्वच्छ वातावरण और स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है। स्वच्छता के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति बहुत ही खराब है। मध्य प्रदेश में 69.99 फीसदी परिवार खुले में शौच करते हैं जिसमें 86.42 फीसदी ग्रामीण परिवार शामिल हैं। वंचित समुदाय के बीच में स्थिति तो और भी चिंताजनक है। कुल अनुसूचित जनजाति के 90.8 फीसदी और कुल अनुसूचित जाति के 77.94 फीसदी परिवार खुले में शौच करते हैं। स्वच्छता के संदर्भ में सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में यह प्रगति बहुत ही धीमी है। वर्ष 2001 में ग्रामीण क्षेत्र में खुले में शौच की स्थिति 91 फीसदी से वर्ष 2011 में 88 फीसदी तथा शहरी क्षेत्र में वर्ष 2001 में 32 फीसदी से वर्ष 2011 में 27 फीसदी तक हुई है। यह दर्शाता है कि पिछले 10 वर्षों में मामूली सुधार हुआ है। प्रदेश की अधिकांश लगभग 7.2 करोड़ आबादी खुले में शौच करती है।
खुले में शौच के कारण मानव मल से पानी का प्रदूषण और प्रदूषित पानी से मानव जीवन पर खतरे की बड़ी संभावना होती है। मानव जीवन को प्रभावित करने वाली 80 फीसदी बीमारियाँ जलजनित होती है जिसका प्रमुख कारण जल का प्रदूषण है। प्रदेश में निम्न स्वास्थ्य स्तर तथा बच्चों के कुपोषण के प्रमुख कारणों में डायरिया की बीमारी जल प्रदूषण से ही होती है। स्वास्थ्य से स्वच्छता का जुड़ाव होने के कारण स्वास्थ्य के अधिकार को प्राप्त करने के लिए स्वच्छता के अधिकार का होना बहुत ही जरूरी है। महिलाओं की मर्यादा, मान-सम्मान और अधिकार में भी स्वच्छता का मुद्दा शामिल है। खुले में शौच के कारण महिलाओं को विभिन्न असुरक्षाओं के साथ-साथ असम्मानजनक स्थितियों से गुजरना पड़ता है और इसी समय उनके प्रति अपराध और हिंसा भी होते हैं। प्रदेश के स्कूलों में बनाए गए 91 फीसदी शौचालय और मूत्रालय संरचना में टूट-फूट, पानी की अनुपलब्धता, रखरखाव के अभाव के कारण बेकार पड़े हुए हैं। पढ़ने वाली बालिकाओं का पढ़ाई छोड़ने का एक कारण स्कूलों में शौचालय की सुविधाओं का अभाव भी होता है, जिससे शिक्षा का अधिकार प्रभावित है। स्वच्छता का मुद्दा स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला, बच्चों और विभिन्न वर्गों से जुड़े होने के कारण उनके मानवाधिकारों को प्रभावित करता है।
Hope it helps you
bye mark me as BRAINLIEST
मानव मल अपशिष्ट तरल तथा अपशिष्ट ठोस पदार्थों के सुरक्षित निपटान के लिए बेहतर प्रबंधन व्यक्तिगत व सामुदायिक स्वच्छता को बढ़ावा देता है जिससे की स्वच्छ वातावरण और स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है। स्वच्छता के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति बहुत ही खराब है। मध्य प्रदेश में 69.99 फीसदी परिवार खुले में शौच करते हैं जिसमें 86.42 फीसदी ग्रामीण परिवार शामिल हैं। वंचित समुदाय के बीच में स्थिति तो और भी चिंताजनक है। कुल अनुसूचित जनजाति के 90.8 फीसदी और कुल अनुसूचित जाति के 77.94 फीसदी परिवार खुले में शौच करते हैं। स्वच्छता के संदर्भ में सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में यह प्रगति बहुत ही धीमी है। वर्ष 2001 में ग्रामीण क्षेत्र में खुले में शौच की स्थिति 91 फीसदी से वर्ष 2011 में 88 फीसदी तथा शहरी क्षेत्र में वर्ष 2001 में 32 फीसदी से वर्ष 2011 में 27 फीसदी तक हुई है। यह दर्शाता है कि पिछले 10 वर्षों में मामूली सुधार हुआ है। प्रदेश की अधिकांश लगभग 7.2 करोड़ आबादी खुले में शौच करती है।
खुले में शौच के कारण मानव मल से पानी का प्रदूषण और प्रदूषित पानी से मानव जीवन पर खतरे की बड़ी संभावना होती है। मानव जीवन को प्रभावित करने वाली 80 फीसदी बीमारियाँ जलजनित होती है जिसका प्रमुख कारण जल का प्रदूषण है। प्रदेश में निम्न स्वास्थ्य स्तर तथा बच्चों के कुपोषण के प्रमुख कारणों में डायरिया की बीमारी जल प्रदूषण से ही होती है। स्वास्थ्य से स्वच्छता का जुड़ाव होने के कारण स्वास्थ्य के अधिकार को प्राप्त करने के लिए स्वच्छता के अधिकार का होना बहुत ही जरूरी है। महिलाओं की मर्यादा, मान-सम्मान और अधिकार में भी स्वच्छता का मुद्दा शामिल है। खुले में शौच के कारण महिलाओं को विभिन्न असुरक्षाओं के साथ-साथ असम्मानजनक स्थितियों से गुजरना पड़ता है और इसी समय उनके प्रति अपराध और हिंसा भी होते हैं। प्रदेश के स्कूलों में बनाए गए 91 फीसदी शौचालय और मूत्रालय संरचना में टूट-फूट, पानी की अनुपलब्धता, रखरखाव के अभाव के कारण बेकार पड़े हुए हैं। पढ़ने वाली बालिकाओं का पढ़ाई छोड़ने का एक कारण स्कूलों में शौचालय की सुविधाओं का अभाव भी होता है, जिससे शिक्षा का अधिकार प्रभावित है। स्वच्छता का मुद्दा स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला, बच्चों और विभिन्न वर्गों से जुड़े होने के कारण उनके मानवाधिकारों को प्रभावित करता है।
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