स्वास्थ्य पोषण और रोजगार में अभी भी मौजूद लिंग के पूर्वाग्रह को देखना निवासी सही आंसर दीजिए हिंदी में
Answers
Answer:
लिंग असमानता मानव समाज के सामने आने वाली प्रमुख समस्याओं में से एक है। यह महिला के प्रति असमान और पक्षपाती उपचार को संदर्भित करता है। सौभाग्य से, समय की अवधि में, चीजें धीरे-धीरे बदल गई हैं। हालाँकि, यह अभी भी समाज में एक बहुत ही गंभीर और व्यापक समस्या है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 (NFHS-3) हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (IIPS) द्वारा प्रकाशित भारतीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था। रिपोर्ट बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इस पत्र में स्वास्थ्य और पोषण के संबंध में लैंगिक समानता सूचकांक के आधार पर लैंगिक असमानता का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। निष्कर्ष भारत के अधिकांश राज्यों में महिला (बच्चों और वयस्कों दोनों) के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लिंग पूर्वाग्रह दिखाते हैं।
Explanation:
Hope it will help you
स्वास्थ्य पोषण और रोजगार में मौजूदा लिंग पूर्वाग्रह को देखना किसी भी तरह उचित नहीं है। समय आज आगे बढ़ चुका है, आज लैंगिक असमानताएं मिटने लगे हैं। स्त्री हो या पुरुष सबको समान स्तर पर देखा जाने लगा है। अब स्त्री घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही है। ऐसे में जीवन की मूलभूत सुविधाओं जैसे कि स्वास्थ्य, पोषण, रोजगार आदि में लिंग पूर्वाग्रह को देखना निराशाजनक है।
अगर समाज में समानता कायम रखनी है महिलाओं के उत्थान के लिए सही ढंग से कार्यों को सही दिशा में ले जाना है तो लैंगिक पूर्वाग्रह को मिटाना होगा। केवल लैंगिक पूर्वाग्रह ही नहीं हर तरह के पूर्वाग्रह को मिटाने से ही एक समान समाज का निर्माण होगा। लैंगिक असमानताओं का भेद मिट रहा है। शहरों में तो लड़के-लड़की दोनों को समान स्तर पर आंका जाने लगा है। शिक्षित समाज तो लैंगिक असमानता लगभग मिट चुकी है। अशिक्षित समुदाय अथवा गांव आदि में लैंगिक असमानता के रूप में कुछ भेदभाव बाकी हैं, उनमें भी थोड़ी-थोड़ी जागरूकता आ रही है। इसलिए आज के समय में स्वास्थ्य, पोषण, रोजगार में पूर्वाग्रह को देखना सही नहीं है।