स्वास्थ्य सुरक्षा पर निबंध
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स्वास्थ्य का अत्यंत व्यापक अर्थ है । जहाँ किसी जीव-जंतु के संदर्भ में यह शारीरिक, क्रियात्मक या उपापचयी (मेटाबोलिक) स्थिति या क्षमता का द्योतक है, वहीं मानवीय संदर्भ में यह व्यक्ति के शरीर, मस्तिष्क एवं मनोवृत्ति को दर्शाता है । दूसरे शब्दों में, बीमारी व दुःख दर्द से मुक्ति की अवस्था ही स्वास्थ्य है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सन् 1946 में इसे व्यापक रूप से परिभाषित किया है, जिसके अनुसार, स्वास्थ्य का अर्थ बीमारी या कमजोरी का न होना ही नहीं है, बल्कि शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक कल्याण की पूर्ण अवस्था ही स्वास्थ्य है ।
यद्यपि यह परिभाषा विवाद का विषय रही है विशेषकर इस दृष्टि से कि इसमें परिचालनगत मूल्य का अभाव है तथा ‘पूर्ण’ शब्द के प्रयोग से उत्पन्न समस्या के कारण भी इसे सर्वथा स्वीकार करना कठिन है । फिर भी, यह सर्वाधिक टिकाऊ वर्गीकरण प्रणाली है जिसे स्वास्थ्य के उपादानों को परिभाषित करने एवं मापन की दृष्टि से सामान्यतः इस्तेमाल किया जाता है ।
स्वास्थ्य की देखभाल एवं अभिवृद्धि शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक कल्याण के विभिन्न संयोजनों पर आधारित है, जिन्हें कभी-कभी सामूहिक रूप से ‘स्वास्थ्य त्रिभुज’ कहा जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के ओटावा स्वास्थ्य सवर्द्धन चार्टर के अनुसार स्वास्थ्य एक अवस्था मात्र नहीं है, बल्कि ”दैनंदिन जीवन का साधन-स्रोत है. न कि जीने का उद्देश्य मात्र । स्वास्थ्य एक सकारात्मक अवधारणा है, जो सामाजिक एवं व्यक्तिगत साधन स्रोतों तथा शारीरिक क्षमताओं पर बल देती है ।”
आरोग्य-प्रदाता मनुष्यों को रोगों से बचाने या उनकी स्वास्थ्य-सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण तथा अच्छे स्वास्थ्य के सवर्द्धन हेतु व्यवस्थित गतिविधियों का संचालन करते हैं । ‘स्वस्थ’ शब्द का प्रयोग बहुत से निर्जीव संगठनों तथा मनुष्यों पर उनके लाभकारी प्रभावों के संदर्भ में व्यापक रूप से किया जाता है ।
जैसे – स्वस्थ समुदायों, स्वस्थ नगरों या स्वस्थ पर्यावरणों के अर्थ में अच्छे स्वास्थ्य के उद्देश्य से किए जाने वाले उपायों तथा किसी व्यक्ति के परिवेश के अतिरिक्त, अन्य कई ऐसे तथ्य होते है, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति को प्रभावित करते हैं । ये तथ्य हैं – मनुष्य की पृष्ठभूमि, जीवन-शैली, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियों । इन्हें ही स्वास्थ्य का निर्धारक कहा जाता है ।
सामान्यतः जिस परिवेश में व्यक्ति रहता है, उसका महत्व उसके स्वास्थ्य की स्थिति एवं जीवन की गुणवत्ता की दृष्टि से अवश्य होता है । इस तथ्य को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि स्वास्थ्य की देखभाल एवं स्वास्थ्य सुधार केवल स्वास्थ्य-विज्ञान की प्रगति और प्रयोग के माध्यम से ही संभव नहीं है ।
इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति एवं समाज निजी स्तर पर प्रयास करें तथा बुद्धिमतापूर्ण जीवन-शैली के विकल्पों को अंगीकार करे । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रमुख स्वास्थ्य निर्धारक हैं – सामाजिक एवं आर्थिक पर्यावरण, भौतिक पर्यावरण तथा व्यक्ति की निजी विशेषताएं एवं उसका व्यवहार ।
और अधिक स्पष्ट करें, तो लोग स्वस्थ हैं अथवा अस्वस्थ इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं:
विभिन्न संगठनों के अध्ययनों, रिपोर्टों तथा संदर्भों की एक बडी संख्या है, जिनमें स्वास्थ्य और विभिन्न तथ्यों के बीच अंतर्सम्बन्धों की छानबीन उपलब्ध होती है । ये तथ्य हैं – जीवन-शैलियाँ, पर्यावरण, स्वास्थ्य-रक्षा संगठन तथा स्वास्थ्य-नीति ।
जहाँ तक अध्ययनों एवं रिपोर्टों का प्रश्न है कनाडा की 1974 लालोंड रिपोर्ट, कैलीफोर्निया का एलायेडा काउटी-अध्ययन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व स्वास्थ्य रिपोर्टों की श्रृंखला । इन रिपोर्टों एवं अध्ययनों में वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है ।
इन समस्याओं में शामिल हैं – स्वास्थ्य-रक्षा की उपलब्धता तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिणामों में सुधार लाना, विशेषकर विकासशील देशों में ‘हेल्थ फील्ड’ की अवधारणा, जो मेडिकल केयर में अलग है, कनाडा के लालोंड रिपोर्ट से प्राप्त हुई है । रिपोर्ट में तीन परस्पर निर्भर फील्डों को चिन्हित किया गया है, जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के प्रमुख निर्धारक हैं ।
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