सेवासदन उपन्यास की मूल समस्याओं पर अपने विचार प्रस्तुत करें आंसर
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Explanation:
‘उपन्यास सम्राट’ प्रेमचन्द आधुनिक भारतीय साहित्य के ध्रुव तारा है । उनके कथा पात्र और पात्रों के संदेश जहाँ जहाँ व्याप्त है वहाँ वहाँ रचयिता की यश फैले है । उनके कालातीत उपन्यासों की संख्या बारह है । ये उपन्यास उनके अमरत्व का बखान करते है । प्रेमचन्द सचमुच बहुआयामी कलाकार है । ‘प्रेमा’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’ और ‘वरदान’ प्रेमचन्द के आरंभ कालीन उपन्यास है ।
प्रेमा
प्रेमचन्द मूल रूप में उर्दू के लेखक थे । इसलिए उन्होंने अपनी आरंभ काल में पहले उर्दू में उपन्यास लिखते थे और बाद में हिन्दी में रूपांतर करता था । उनका पहला उर्दू उपन्यास “असरारे मुआबिद उर्फ देवस्थान रहस्य” है । यह 8 अक्तूबर 1903 से 1 फरवरी 1905 तक ‘आवाज़-ए-खल्क’ नामक उर्दू साप्ताहिक में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित किया था । यह अपूर्ण रचना होने के कारण बाद में उन्होंने इसे परिमार्जित कर 1906 में “हमखुर्मा ओ हम सवाब” नाम से प्रकाशित किया । फिर उन्होंने इसे हिन्दी में रूपांतरित कर 1907 में “प्रेमा” नाम से प्रकाशित किया । “प्रेमा” प्रेमचन्द का हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है ।
“प्रेमा” उपन्यास का नायक अमृतराज विधवा का विवाह करता है । जब प्रेमचन्द अपने प्रथम विवाह की असफलता से दुःखी थे तब उन्होंने विवेच्य उपन्यास की रचना शुरु कर दी थी । वास्तव में थोड़े दिनों के बाद उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी को पत्नी बनाया। लगता है कि “प्रेमा” का कथानक प्रेमचन्द के वैयक्तिक जीवन का एक ऊँचा पहलू है । संभवतः उपन्यासकार ने तत्कालीन जीवन यातनाओं एवं व्यक्तिगत परिस्थितियों को “प्रेमा” के रूप में परिवर्तित कर दिया है । यह तो सच है कि अपने जीवन की एक घटना को उन्होंने अपने प्रथम उपन्यास की कथा वस्तु बनाकर मूर्त रूप प्रदान कर दिया । “प्रेमा” और “प्रतिज्ञा” अलग अलग उपन्यास होकर भी दोनों की कथानक में अंतर नहीं होता है, केवल पात्रों के नाम में ही थोड़ा अंतर होता है । इसलिए पूरा कथानक “प्रतिज्ञा” में दिया जायेगा ।
“प्रेमा” उपन्यास लिखते समय प्रेमचन्द आर्य समाज के आदर्शों से आकर्षित थे । आर्य समाज में विधवा विवाह का बड़ा प्रचलन था । उपन्यास में उन्होंने विधवा विवाह की समस्या को ज़ोर से काबिल कर दिया है । उपन्यास का महत्वपूर्ण चरित्र अमृतराज है । अमृतराज आर्य समाज विश्वासी तथा परिवर्तनवादी है । विधवा को जीवन सहचरी बनाने का उनका निर्णय सराहनीय है ।
प्रतिज्ञा
“प्रतिज्ञा” प्रेमचन्द का आरंभ काल का आदर्शवादी उपन्यास है । विद्वान इसे उनके तीन लघु उपन्यास की कोटि में स्थान देते है । इस उपन्यास की रचना सन् 1905-6 में हुई थी। यह जनवरी 1927 से नवंबर 1927 तक “चाँद” पत्रिका में धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया था । वस्तुतः इसे “प्रेमा” उपन्यास के परिवर्तित रूप समझते है । इसलिए इसकी कथानक “प्रेमा” से भिन्न नहीं होता । विधवाओं के पुनर्विवाह पर आधारित यह उपन्यास प्रेमचन्द का सामाजिक मनोभाव स्पष्ट कर देता है ।
अठारहवीं-उन्नीसवीं शती में उत्तर भारत में आर्य समाज का प्रचलन जोरों पर था । आर्य समाज में विधवा विवाह को बड़ा प्रोत्साहन मिला था । वैसे आर्य समाज ने छूआ-छूत का खुलकर विरोध करता था । प्रेमचन्द ने आर्य समाज आदर्शों से प्रभावित होकर, सुधारवादी दृष्टिकोण प्रकट करते हुए “प्रतिज्ञा” उपन्यास की रचना की है ।
“प्रतिज्ञा” उपन्यास का नायक अमृतराय और नायिका उसकी साली प्रेमा है । अमृतराय ने पहले शपथ रखा था कि विधवा से विवाह करेंगे । दाननाथ अमृत का परम मित्र है । दोनों एक साथ प्रेमा से प्रेम करते है । इस बीच प्रेमा की बड़ी बहन की मृत्यु होती है । तब प्रेमा अमृतराय को पति बनाना चाहती है । आर्य समाज के आदर्शों पर प्रभावित अमृतराय काशी के आर्य मंदिर में जाकर समाज नेता अमरनाथ के भाषण सुनते है । इसके बाद उनके मन में परिवर्तन होता है । वह विवाह से अतृप्त होकर समाज सुधार की ओर मुड़ जाता है । अमृतराय ने गाँव में एक विधवाश्रम खोल दिया और अपना जीवन विधवाओं की भलाई के लिए समर्पित किया । विवाह से वंचित प्रेमा दुःखी एवं विवश हो जाती है । उसकी शादी दाननाथ से संपन्न होती है । प्रेमा के पड़ोसिन पूर्णा विधवा जीवन बिता रही है । कमलाप्रसाद प्रेमा के भाई है और सुमित्रा उनकी पत्नी । वासना विकृतियों में डूब गया कमलाप्रसाद पड़ोसिन पूर्णा पर बलात्कार करने को तैयार होते है । अपनी रक्षा के वास्ते पूर्णा कुर्सी से कमला प्रसाद को मारकर भाग जाती है । अमृतराय ने पूर्णा को बचाकर अपने विधवाश्रम पर अभय देता है । इस प्रकार वह विधवाओं की रक्षा करने की ‘प्रतिज्ञा’ पूरा कर देता है । कथानक तत्कालीन समाज में स्त्रियों पर होने वाली क्रूरताओं पर आधारित है ।
“प्रतिज्ञा” उपन्यास के कथानक में जीवन की वैविध्य पायी जाती है । वे बताना चाहता है कि कोई स्त्री स्वयं विधवा नहीं बन जाती । प्रेमचन्द की लेखनी विधवा पर समाज की क्रूरता आंकने में सक्षम है । प्रेमचन्द शिक्षित है । उन्हें अपराधी कमलाप्रसाद के अनुकूल रहना असंभव है । लगता है कि अमृतराय का आदर्श प्रेमचन्द का अपना आदर्श है।
kaya katayho muje to kisbi samaj Nahi aya