संवाद लेखन
आपने एक हास्यस्पद फिल्म देखी है।उस फिल्म के बारे में चर्चा करते हुए अपने मित्र के साथ हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए
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फिल्मी संवादों की विशेषताएं निम्नानुसार बताई जा सकती हैं -
अ. यथार्थवादी,
आ. स्वाभाविक,
इ. सहज,
ई. तर्कसंगत,
उ. सुगठित,
ऊ. प्रभावशाली,
ऋ. संप्रेषणीय,
ऌ. संक्षिप्त आदि।
उपर्युक्त विशेषताएं अगर संवादों में हो तो फिल्में चुस्त-दुरुस्त होती है। दर्शक संवादों को गानों जैसा अपने होठों पर सजा लेते हैं।
2. फिल्मी संवाद के प्रकार
फिल्मी संवादों को असगर वज़ाहत जी ने चार वर्गों में विभाजित किया है। उन्होंने कहा है कि "संवादों के माध्यम से न केवल साधारण बातचीत होती है बल्कि भावनाओं और विचारों को भी व्यक्त किया जाता है। परिस्थिति और घटनाओं का ब्योरा दिया जाता है, टिप्पणियां की जाती हैं। संवादों का बहुआयामी स्वरूप उसके प्रकार निर्धारित करने पर बाध्य करता है। संवाद के विविध प्रयोगों के आधार पर संवाद को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – (1) सामान्य जानकारी देने या लेनेवाले संवाद, (2) औपचारिक कार्य-व्यापार की सूचना देनेवाले संवाद, (3) विचार व्यक्त करनेवाले संवाद और (4) भावनाएं व्यक्त करनेवाले संवाद।" (पटकथा लेखन व्यावहारिक निर्देशिका, पृ. 72)
अ. सामान्य जानकारी देने या लेनेवाले संवाद – सामान्य जानकारी देनेवाले संवाद सीधे-साधे और सरल होते हैं। इनके माध्यम से केवल जानकारी और सूचनाएं प्राप्त होती है। इसकी भाषा और भाषा में निहित अर्थ दर्शकों की समझ में आसानी से आता है। इसमें कोई अतिरिक्त भाव नहीं होता है। इन संवादों में कोई चमत्कार और टेढ़ापन भी नहीं होता है। कोशिश यह होती है कि दर्शक पात्रों की भाषा को आसानी समझे और भ्रांति पैदा न हो।
आ. भावनाएं व्यक्त करनेवाले संवाद – मनुष्य के स्थायी भाव ग्यारह प्रकार के हैं और इनके साथ जुड़कर आनेवाले विभाव, अनुभाव और संचारी भावों की संख्या भी अधिक हैं। अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारी भाव स्थायी भावों को ताकद प्रदान करते हैं और इन भावों को बड़ी सार्थकता के साथ फिल्मी संवादों में इस्तेमाल किया जाता है। फिल्मों में संवादों के माध्यम से मनोभावों को प्रकट करना कठिन और जटिल कार्य है। हर कहानी और पटकथा में यह भाव सर्वत्र बिखरे पड़े होते हैं और उनको बड़ी सादगी के साथ क्रम से सजाना होता है। संवाद लेखक के लिए चुनौती यह होती है कि सभी फिल्मों मे कम-अधिक मात्रा में यहीं भाव होते हैं तो अभिव्यक्ति करते वक्त कौनसे शब्दों और वाक्यों को चुना जाए। इतनी सारी फिल्में बन रही हैं और उनमें वहीं भाव प्रकट हो रहे हैं तो पुनरावृत्ति होने की संभावनाएं होती है। उससे बचने के लिए भावानुरूप शब्दों का चुनाव और संवाद लेखन कौशल का कार्य माना जाता है।