संवाद लेखन - अक्ल(समझ) व ऐंठ (अकड़) के मध्य अपनी अपनी श्रेष्ठता बताते हए संवाद लिखिए।तनष्कर्य होना अतनवार्य है।
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संवाद दो शब्दों ‘सम्’ और ‘वाद’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-बातचीत करना। इसे हम वार्तालाप भी कहते हैं। दो व्यकि तयों के मध्य होने वाली बातचीत को संवाद कहा जाता है।
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संवाद व्यक्ति के मन के भाव-विचार जानने-समझने और बताने का उत्तम साधन है। संवाद मौखिक और लिखित दोनों रूपों में किया जाता है। संवाद में स्वाभाविकता होती है। इसमें व्यक्ति की मनोदशा, संस्कार, बातचीत करने का ढंग आदि शामिल होता है। व्यक्ति की शिक्षा-दीक्षा उसकी संवाद शैली और भाषा को प्रभावित करती है। हमें सामने वाले की शिक्षा और मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर संवाद करना चाहिए। इसी बातचीत का लेखन संवाद लेखन कहलाता है।
प्रभावपूर्ण संवाद बोलना और लिखना एक कला है। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –
संवाद की भाषा सरल, स्पष्ट और समझ में आने वाली होनी चाहिए।
संवाद बोलते समय सुननेवाले की मानसिक क्षमता का ध्यान रखना चाहिए।
वाक्य छोटे और सरल होने चाहिए।
संवादों को रोचक एवं सरस बनाने के लिए सूक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग करना चाहिए।
संवाद लिखते समय विराम चिह्नों का प्रयोग उचित स्थान पर करना चाहिए।
बोलते समय बलाघात और अनुतान को ध्यान में रखना चाहिए।
एक बार में एक या दो वाक्य बोलकर सुनने वाले की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करनी चाहिए।