संवाद लेखन कोरोना वैक्सीन के बाद दो मित्रों के मध्य बातचीत
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Answer:
Corona virus par do mitraon ke beech samvad – Samvad Lekhan
मुकेश : अनिल, इस कोरोना वायरस ने तो पूरी दुनिया का हाल ही बेहाल कर दिया है।
अनिल : सच कहते हो मित्र। पूरी दुनिया इस कोरोना वायरस से परेशान है।कितने लोगों का रोजगार समाप्त हो गया है और कितने ही घर बर्बाद कर दिए हैं इस वायरस ने तो। मुकेश : इस वायरस का संक्रमण इतनी तेजी से होता है कि सप्ताह भर में संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी हो जाती है।
अनिल : अरे मित्र! जो लोग पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित हैं उनके लिए तो यह और भी ज्यादा घातक है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तो अन्य लोगों से कमजोर ही होती है और वे इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। मुकेश : इस वायरस से मरने वाले लोगों के तो शव भी उनके परिवार के लोगों तक को नहीं मिल पा रहे हैं।
अनिल : इतना कुछ हो रहा है लेकिन तब भी लोग इस वायरस से बचने के लिए जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए उनका पालन नहीं कर रहे हैं और संक्रमण बढ़ने में पूरा योगदान दे रहे हैं।
मुकेश : सही कह रहे हो मित्र। यदि इस वायरस से बचना है तो हमें दो गज की दूरी, मास्क का प्रयोग और नियमित रूप से हाथ धोने का पालन करना चाहिए। साथ ही टीकाकरण में भी भाग लेना चाहिए।
Explanation:
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Explanation:
भारत सरकार और आपदा प्रबंधन से जुड़े सभी मंत्रालयों को चाहिए कि वो राज्यों में अपने समकक्ष विभागों से अति सक्रियता से संवाद करें. इस संवाद में सामाजिक संगठनों और नागरिक समूहों को भी शामिल किया जाए. ताकि संवाद के उनके माध्यम मज़बूत हो सकें.
कोरोना वायरस, महामारी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुशासन, कोविड-19, घरेलू राजनीति, सामुदायिक स्थानांतरण, संवाद
इस समय कोरोना वायरस की महामारी ने पूरी दुनिया पर क़हर बरपाया हुआ है. इस महामारी के कारण न केवल सभी देशों की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर अचानक से बहुत बोझ बढ़ गया है. बल्कि, इस संकट ने किसी मुश्किल वक़्त पर संवाद की चुनौती भी खड़ी कर दी है. आज सूचना की खपत का सबसे बड़ा माध्यम सोशल मीडिया बन गया है. ऐसे में संकट के समय साफ और सूचना देने वाले से लेकर सूचना प्राप्त करने वाले विभिन्न समूहों के बीच सीधा संवाद, संकट से निपटने के लिए बेहद आवश्यक है. अगर सूचना स्पष्ट नहीं होगा, तो हम इस महामारी से निपटने के लिए संघर्ष ही करते रहेंगे.
11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था. क्योंकि उस समय तक कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों की संख्या तेरह गुना बढ़ चुकी थी. उस समय तक भारत में इस वायरस से संक्रमित केवल 62 मामले सामने आए थे. जो विश्व में कुल संक्रमित लोगों का महज़ 0.05 प्रतिशत ही था. जहां एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं कई यूरोपीय देशों ने इस महामारी की गंभीरता को समझ लिया था और इससे निपटने के लिए आवश्यक संसाधनों का भी आकलन कर लिया था. लेकिन, उस समय तक भारत संकट के इस महासागर के किनारे बैठा रक्षात्मक रुख़ अपनाए हुए था. ऐसा लग रहा था कि भारत को इस तबाही के आने का इंतज़ार था. सवाल ये है कि क्या भारत ने इस महामारी से निपटने के लिए ज़रूरी उपाय करने में देर कर दी?
भारत में नए कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दिनों में पहले संक्रमण के शिकार हुए राज्यों ने अपने अपने स्तर पर इस महामारी को लेकर जानकारियों और संवाद का तरीक़ा अपने अपने हिसाब से अपनाया था. जबकि केंद्र सरकार उस समय तक इस बात को लेकर स्पष्ट नीति नहीं बना सकी थी कि उसे इस महामारी से निपटने की कैसी राष्ट्रव्यापी नीति का निर्माण करना है. साफ़ है कि इस महामारी को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय और बेहतर हो सकता था
केंद्र, राज्य और महामारी
28 राज्यों के 736 ज़िलों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों वाले भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में तरह तरह की बोलियां बोली जाती हैं. हर क्षेत्र की अपनी विशेष भाषा और संस्कृति है, जो कई बार तो एक ही राज्य में अलग-अलग होती है. ऐसे में इस संकट को लेकर संवाद करना भारत के लिए बहुत जटिल समस्या बन गया. भारत की सरकार को न केवल 1.3 अरब जनता से संवाद करना था. बल्कि, इसी के साथ सरकार को हर राज्य के लिए विशेष संवाद की व्यवस्था तैयार करनी थी, जो इस संकट के समय संवाद को सुचारू रूप से बनाए रख सके. इस संवाद का मक़सद देश के हर राज्य के समाज के हर तबक़े, ख़ासतौर से ग़रीबों और समाज के हाशिए पर पड़े लोगों तक सही सूचना पहुंचाना था. भारत में नए कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दिनों में पहले संक्रमण के शिकार हुए राज्यों ने अपने अपने स्तर पर इस महामारी को लेकर जानकारियों और संवाद का तरीक़ा अपने अपने हिसाब से अपनाया था. जबकि केंद्र सरकार उस समय तक इस बात को लेकर स्पष्ट नीति नहीं बना सकी थी कि उसे इस महामारी से निपटने की कैसी राष्ट्रव्यापी नीति का निर्माण करना है. साफ़ है कि इस महामारी को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय और बेहतर हो सकता था. अलग-अलग राज्यों की सरकारों ने महामारी की रोकथाम के लिए कर्फ्यू और धारा 144 लागू करने जैसे उपाय अपनाने शुरू कर दिए थे. वहीं, केंद्र सरकार की तरफ़ से इस बारे में पहला स्पष्ट सूचना 19 मार्च को आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पूरे देश की जनता से 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन करने की अपील की. लेकिन, देश के तमाम हिस्सों में कई जगहों पर बड़ी संख्या में लोग पांच मिनट के लिए ताली बजाने और घंटी बजाने के लिए इकट्ठा हो गए. इसका मक़सद महामारी से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों का सम्मान करना था. पुलिसकर्मियों और मीडिया का हौसला बढ़ाना था. ज़रूरी सेवाओं के निष्पादन में लगे लोगों का मान बढ़ाना था. लेकिन, जिस तरह ताली बजाने और घंटी बजाने के नाम पर भीड़ इकट्ठा हुई, उससे साफ़ हो गया कि देश की जनता के एक बड़े हिस्से में सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर कोई गंभीरता नहीं थी. ताली बजाने को लेकर देश में इतना उत्साह बढ़ गया कि इस दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए बनाई गई आर्थिक प्रतिक्रिया की टास्क फ़ोर्स के गठन की प्रमुख ख़बर ही दब गई. दो दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लिए पूरी तरह से लॉकडाउन लागू करने का एलान किया. इससे देश के कई हिस्सों में