सेवंथ स्टैंडर्ड हिंदी क्वेश्चन गांव में अभी कौन-कौन सी समस्याएं इसका आंसर
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ग्रामीणों की मानें तो गांव का इतिहास काफी पुराना है। बुजुर्गो के अनुसार अगर इतिहास में झांकें तो यह गांव 11वीं शताब्दी में बसा था। शुरुआत में यहां भी खेती-बाड़ी, मजदूरी एवं पशुपालन होता था। इस गांव में 21 जातियों के लोग रहते थे और सभी में हमेशा आपसी प्रेम व सद्भाव की भावना रही। यही वजह है कि इस गांव ने कभी भी जातिगत लड़ाई नहीं देखी। ग्रामीणों का कहना है कि काफी समय तक इस गांव में पुलिस नहीं आई। कुछ वर्ष पूर्व यहां शराब के दो ठेके ग्रामीणों के लिए मुसीबत बन गए। इसके बाद काफी संघर्ष के बाद गांव वालों ने मुख्यमंत्री से मिलकर ठेके बंद कराए। गांव में अलग-अलग समुदाय के लिए चार चौपाल बनाई गई। गांव में एक प्राचीन मंदिर है जिसकी सभी ग्रामीणों में काफी मान्यता है।
तीन प्रमुख समस्याएं
खाली स्थान डलावघर में तब्दील
ग्रामीणों की सबसे बड़ी समस्या गांव के सामने मौजूद खाली स्थान के डलावघर में तब्दील होने से बनी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि मेन मार्केट के सामने गंदगी होने से आने जाने वालों को काफी मुश्किलें होती हैं। इसके अलावा आसपास के सभी इलाकों से कचरा लाकर भी यहीं डाल दिया जाता है। रात में कई इलाकों से लोग अवैध रूप से ट्रकों में भरकर यहां मलबा डाल जाते हैं।
खुले नाले ने बढ़ाई परेशानी
गांव के निवासियों का कहना है कि यहां नाले-नालियों की नियमित सफाई नहीं होती। इस कारण कई स्थानों पर गंदगी का माहौल बना रहता है। नाले व नालियों की गाद नहीं निकाले जाने से यहां मामूली बारिश होते ही जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि खुले नाले में गंदगी रहने से बीमारियों के फैलने की संभावना तो रहती ही है। इसके साथ ही मेन मार्केट के मोड़ पर नाला खुला होने से दुर्घटनाओं की आशंका भी लगातार बनी रहती है।
जर्जर पड़ी है गांव की प्राचीन चौपाल
इस गांव में एक प्राचीन चौपाल है, जो जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते जर्जर हालत में पहुंच गई है। कुछ स्थानों पर यह चौपाल इतनी खस्ताहाल है कि कभी भी इसके हिस्से टूटकर गिर सकते हैं। ऐसे में यह चौपाल स्थानीय निवासियों के लिए खतरे का सबब बनी हुई है। यह चौपाल संकरी गलियों के बीच स्थित है। इसके आसपास कई घर मौजूद हैं। यहां ज्यादातर समय छोटे-छोटे बच्चे खेलते रहते हैं। ऐसे में यहां लगातार दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है।
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गांव की ज्यादातर गलियों में सीवर पड़ चुके हैं और तीन-चार गलियों में इसका काम बाकी है। ऐसे में इन गलियों में रहने वालों को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है। यहां कुछ गलियों में सीवर का काम खानापूर्ति कर छोड़ दिया गया है।
- गिरीशचंद वर्मा।
हमें सबसे ज्यादा परेशानी गांव के सामने मौजूद खाली पड़े स्थान के डलावघर में तब्दील होने से झेलनी पड़ रही है। इसके दूसरी ओर खुला नाला है। इससे मेन मार्केट में आने-जाने वालों को मुश्किलों का सामना करना होता है।
- रोहित।
जिस समुदाय भवन का निर्माण गांव की भूमि पर हो रहा है, उसे गांव का नाम नहीं दिया जा रहा है। इस तरह के कार्य गांव के अस्तित्व के लिए खतरा बन रहे हैं। इस स्थिति में ग्रामीणों को सौतेले व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।
- सुनील चौहान।
यहां नाले-नालियों की नियमित रूप से सफाई नहीं होती है। इस काम के लिए 10 कर्मचारी मौजूद हैं मगर आता सिर्फ एक ही है। इस कारण थोड़ी सी बारिश होते ही जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में कई बार निकलना भी मुश्किल हो जाता है।
- अनिल चौहान।
गांव में महिलाओं के लिए कोई भी डिस्पेंसरी एवं प्राथमिक उपचार की सुविधा नहीं है। यहां एक सिलाई सेंटर तो मौजूद है पर वह बेहद खस्ताहाल है और वहां कोई प्रशिक्षक भी उपलब्ध नहीं है।
- कृष्णा देवी कौशिक।
गांव में एक प्राइमरी स्कूल तो है, मगर कोई सीनियर सेकेंडरी स्कूल नहीं है। इस वजह से गांव की लड़कियों को काफी दूर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। यहां के प्रमुख मार्ग पर ट्रकों के खड़े होने से छात्राओं का निकलना भी दूभर हो जाता है।