Political Science, asked by kanchankashyap242, 1 month ago

संविधान सरकार को कौन सा सामर्थ्य प्रदान करता है ​

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Answered by pranali9689
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नगरपालिकाएं

नगर निकायों का भारत में लम्‍बा इतिहास है। ऐसे प्रथम नगर निगम की स्‍थापना 1688 में भूतपूर्व मद्रास प्रेसीडेंसी नगर में की गई थी। और तब इसी प्रकार के निगमों द्वारा तब बाम्‍बे और कलकता में 1726 में अपनाया गया। भारत के संविधान में संसद और राज्‍य विधायिकों में प्रजातंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विस्‍तृत व्‍यापक प्रावधान किया गया है। तथापि, संविधान द्वारा शहरी क्षेत्र में स्‍वशासन की स्‍पष्‍ट सांवधैनिक बाध्‍यता नहीं की गई है। जबकि राज्‍य की नीतियों के नीति निर्देशक तत्‍व का आशय ग्राम पंचायतों के संदर्भ में है, राज्‍य सूची की 5 प्रविष्टि में उस्‍पष्‍टता को छोड़कर नगर‍पालिकाओं के लिए विशिष्‍ट संदर्भ नहीं है जो स्‍थानीय स्‍वशासन के विषय को राज्‍यों की जिम्‍मेदारी निर्दिष्‍ट करता है।

शहरी स्‍थानीय निकायों के लिए समान ढांचा प्रदान करने के लिए और स्‍वशासन के प्रभावशील प्रजातांत्रिक यूनिटों के रूप में निकायों के कार्यों को सुदृढ़ बनाने में सहायता देने के लिए संसद में 1992 में नगरपालिकाओं के संबंध में संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992 अधिनियमित किया है। अधिनियम पर राष्‍ट्रपति की सहमति 20 अप्रैल 1993 को प्राप्‍त हुई। भारत सरकार ने 1 जून, 1993 जिस तारीख से उक्‍त अधिनियम लागू हुआ, को अधिसूचित किया। नगरपालिका संबंधी नया भाग IX - क को अन्‍य चीजों के अतिरिक्‍त तीन प्रकार की नगर पालिकाओं को व्‍यवस्‍था करने के लिए संविधान में शामिल किया गया है, अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में मार्गस्‍थ के लिए नगर पंचायतें, छोटे आकार के शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिका परिषद और बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिकाएं, नगरपलिकाओं की नियत अवधि, राज्‍य निर्वाचन आयोग की नियुक्ति, राज्‍य वित्‍त आयोग की नियुक्ति और मेट्रोपोलिटन एवं जिला योजना समितियों का गठन/राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्रों ने अपना निर्वाचन आयोग गठित किया है। नगर निकायों का चुनाव झारखंड और पांडिचेरी को छोड़कर सभी राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों में पूरा किया जा चुका है।

पंचायतें

संविधान का अनुच्‍छेद 40, जो राज्‍य के नीति निदेशक तत्‍वों में से एक को प्रतिष्‍ठापित करता है यह निर्धारित करता है कि ग्राम पंचायत की व्‍यवस्‍था करने का और स्‍वशासन के यूनिटों के रूप में कार्य करने के लिए समर्थ बनाने हेतु यथा आवश्‍यक शक्ति एवं प्राधिकार प्रदान करने के लिए राज्‍य कदम उठाएंगे।

उपर्युक्‍त के आलोक में अन्‍य चीजों के अतिरिक्‍त गांवों या गांवों के समूह में ग्राम सभा की व्‍यवस्‍था करने के लिए ग्राम और अन्‍य स्‍तर या स्‍तरों पर पंचायतों का गठन, ग्राम और मध्‍यवर्ती स्‍तर पर यदि कोई हो के पंचायतों की सदस्‍यता के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्‍या के अनुपात में सीटों का आरक्षण और पंचायतों में प्रत्‍येक स्‍तर पर अध्‍यक्ष के पद के लिए आरक्षण; कम से कम एक तिहाई सीटों का आरक्षण महिलाओं के लिए, पंचायतों के लिए पांच वर्णों का कार्यकाल निर्धारित करना और किसी पंचायत की बरखास्‍तगी होने पर छह माह की अवधि के अंदर चुनाव कराने की व्‍यवस्‍था करने के लिए पंचायतों के संबंध में संविधान में नया भाग IX शामिल किया गया।

निर्वाचन आयोग

भारत में संसद और राज्‍य विधान मंडलों के निर्वाचन और राष्‍ट्रपति तथा उप राष्‍ट्रपति कार्यालय के निर्वाचन आयोजित करने तथा निर्वाचन सूचियां तैयार करने के पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का कार्य निर्वाचन आयोग के सौंपा गया है। यह एक स्‍वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण है। वर्ष 1950 में अपने आरंभ से अक्‍तूबर 1989 त‍क आयोग ने मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त सहित एक एकल सदस्‍य के रूप में कार्य किया। दिनांक 16 अक्‍तूबर 1989 को राष्‍ट्रपति ने नवम्‍बर-दिसम्‍बर 1989 में होने वाले लोक सभा चुनाव के पूर्व दो अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों की नियुक्ति की। यद्यपि, कथित दो आयुक्‍तों को 1 जनवरी 1990 से कार्य भार संभालने से रोक दिया गया, जब निर्वाचन आयुक्‍त के ये दो पद समाप्‍त कर दिए गए। पुन:, 1 अक्‍तूबर 1993 को राष्‍ट्रपति महोदय ने दो अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों की नियुक्ति की। इसके साथ, मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त और अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 को यह प्रदान करने के लिए संशोधित किया गया कि मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त और अन्‍य दो निर्वाचन में आयुक्‍तों को एक समान अधिकार प्राप्‍त हों और एक समान वेतन, भत्ते और अन्‍य पर्क्‍स प्राप्‍त हों, जो भारत के उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायधीश को प्राप्‍त होते हैं। इस अधिनियम में पुन: यह बताया गया है कि मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त और/या दो अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों के बीच मतभेद होने पर इस मामले का निर्णय बहुमत से किया जाएगा। इस अधिनियम की वैधता की जानकारी (1993 में निर्वाचन आयोग के तौर पर नया नाम) (निर्वाचन आयुक्‍तों की सेवा शर्तें और व्‍यवसाय कार्य) अधिनियम, 1991 को उच्‍चतम न्‍यायालय में चुनौती दी गई। यद्यपि, पांच न्‍यायधीशों की संवैधानिक पीठ ने याचिका रद्द की और 14 जुलाई 1995 को एक सर्वसम्‍मत निर्णय द्वारा उपरोक्‍त कानून के प्रावधानों पर रोक लगा दी।

निर्वाचन आयोग की स्‍वतंत्रता और कार्यपालिका के हस्‍तक्षेप को सुरक्षा संविधान की धारा 324 (5) के तहत एक विशिष्‍ट प्रावधान द्वारा सुनिश्चित की गई है कि मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त को उनके कार्यालय से इस प्रकार और उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायधीश के समान आधार के अलावा हटाया नहीं जाएगा और उनकी सेवा की शर्तें उनकी नियुक्ति के बाद उन्‍हें हानि पहुंचाने के लिए बदली नहीं जाएंगी। अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों को मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त की सिफारिश के बिना हटाया नहीं जा सकता है। मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त और अन्‍य निर्वाचन आयुक्‍तों के कार्यालय का कार्यकाल कार्य भार संभालने की तिथि से 6 वर्ष अथवा उनके 65 वर्ष की आयु पर पहुंचने तक होता है, इनमें से जो भी पहले हो।

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