स्वाधीनता आंदोलन में मध्यप्रदेश के योगदान को वर्णन करें ?
Answers
इस क्रांति के समय जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशभर में घूम-घूम कर आजादी की लड़ाई की अलख लोगों में जगा रहे थे। आज के मध्यप्रदेश की उस समय की छोटी-छोटी रियासतों में 1857 में कानपुर, मेरठ, दिल्ली उठ रहे विद्रोह की आंच यहां तक पहुंच रही थी। जून 1857 में नीमच और मंदसौर में विद्रोह हुआ।
Explanation:
सेलुलर जेल की काल कोठरियाँ भी भारतीय क्रान्तिकारियों के मनोबल को नहीं तोड़ पायीं।]] भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है।
क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है।
जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए।
भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरान्त यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। 1857 की क्रांति मे वैसे तो लोधी समाज के 1500 से अधिक लोगो के शहीद होने की पुष्टि करता है इतिहास लेकिन समाज के पिछडेपन के कारण इतनी जानकारी सहेजी नही गईं उसका कारण इतिहास का ग्यान व जानकारी न होना है इतिहास को जागृत व सामाजिक आयामो में पहुंचे ऐसा प्रयास हमे करना होगा -----
1857 की क्रांति मे शहीद हुए हमारे पूर्वजों को शत शत नमन
अमर शहीद वीरागंना अवंती बाईं लोधी मण्डला मध्यप्रदेश
अमर शहीद मालती लोधी झासी उत्तरप्रदेश
अमर शहीद सरस्वती लोधी ललितपुर उत्तरप्रदेश
अमर शहीद जनक सिंह लोधी भारत
अमर शहीद निर्भय सिंह लोधी दतिया मध्यप्रदेश
अमर शहीद सेनापति धुआराम लोधी शिवपुरी मध्यप्रदेश
अमर शहीद विक्रम सिंह लोधी शिवपुरी मध्यप्रदेश
हिण्डोल पति किशोर सिंह दमोह मध्यप्रदेश
रानी हिण्डोरिया दमोह मध्यप्रदेश
अमर शहीद राजा तेज सिंह हीरापुर भारत
अमर शहीद राजा हृदयेश शाह हीरापुर भारत
अमर शहीद दरयाब सिंह लोधी खागा फतेहपुर उत्तरप्रदेश
अमर शहीद राजा मेहरबान सिंह भारत
अमर शहीद गजराज सिंह लोधी हीरापुर भारत
अमर शहीद बहादुर सिंह मण्डला मध्यप्रदेश
अमर शहीद मतवाला मदन सिंह लोधी हैदराबाद आंधप्रदेश
अपराजेय योद्धा वीर रिखौला लोधी गढवाल अमरावती उत्तरप्रदेश
अमर शहीद चेतराम लोधी बालाघाट मध्यप्रदेश
अमर शहीद मातादीन लोधी दिल्ली
अमर शहीद किरण बाला लोधी भारत
अमर शहीद प्रभावति लोधी कालपी भारत
काछुईं ग्राम ग्वालियर की 22 सतीयां काछुईं ग्राम ग्वालियर मध्यप्रदेश
अमर शहीद विद्वलता लोधी चित्तोड राजस्थान
अमर शहीद डालचंद लोधी फरूखाबाद उत्तरप्रदेश
अमर शहीद उमराव सिंह मण्डला मध्यप्रदेश
अमर शहीद जगत सिंह लोधी भारत
अमर शहीद बहादुर सिंह धरनगांव भारत
अमर शहीद अमर सिंह लोधी हैदराबाद आंधप्रदेश