स्वाधीनता संग्राम एवं सैनानियों का संघर्ष पर निबंध
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देश को पराधीनता से मुक्त कराने हेतु सतत् संघर्षशील रहा मऊ जनपद। यद्यपि इस भूभाग पर मऊ जनपद का उदय आजादी के बाद 1988 मंे हुआ लेकिन यहाँ आजादी की ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रही और लोगों ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। यहाँ के क्रांतिवीरों के बलिदान की कहानी प्रदेश और देश की सीमाओं को लाँघ कर विदेशियों को भी रोमांचित करती रही। इसी अंचल में आजादी के लिए मधुबन की दहशत ब्रिटिश संसद में भी व्याप्त थी। माँ भारती को विदेशी हमलावरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए आजादी की बलिवेदी पर अपना शीश समर्पित करने वालों से समृद्ध रहा है, यह अंचल।
ज्ञात इतिहास के लिए विशेष काल खण्ड जिसे स्वाधीनता का प्रथम संग्राम कहा जाता है 1857 से लेकर 1947 के आजादी की लड़ाई की आग यहाँ सदैव धधकती रही और समय-समय पर स्वतन्त्रता के वीर उसमें अपनी आहूति देते रहे। क्रांतिकारी पृष्ठभूमि के कारण ही इस क्षेत्र ने राष्ट्रीय नेतृत्व को सदैव आकर्षित किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं राष्ट्रनायक पण्डित जवाहर लाल नेहरु व जननेता सुभाष चन्द्र बोस स्वाधीनता आंदोलन के दौरान यहाँ आये और लोगों को दिशा दी।
स्वाधीनता के प्रथम संग्राम 1857 के क्रांति में इस क्षेत्र के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 1857 में इस अंचल के जिन दो सपूतों को सरेआम नीम के पेड़ पर लटका कर फाँसी की सजा दी गयी थी वे नवसृजित मधुबन तहसील के ग्राम-दुबारी के निवासी हरख सिंह व हुलास सिंह थे। चंदेल क्षत्रियों के इस गांव में स्वाधीनता के महान सेनानी बाबू कुँवर सिंह का आगमन हुआ था। स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़ कर उनका साथ दिया जिसका परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ा। चंदेल ज़मींदारी की सात कोस की ज़मींदारी छीनकर उस अंग्रेज महिला को दे दी गयी जिसका पति इस आन्दोलन में मारा गया था। गांव के कुँवर सिंह का साथ देने के आरोप में हरख सिंह, हुलास सिंह एवं बिहारी सिंह को बंदी बना लिया गया तथा इन्हें सरेआम फाँसी देने का हुक्म हुआ। बिहारी सिंह तो चकमा देकर भाग निकले लेकिन अन्य दो व्यक्तियों को ग्राम दुबारी के बाग में नीम के पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गयी।