५. स्वाध्ययनस्य विषये अग्रजाय पत्रम् ।
दिल्ली
दिनांकः
आदरणीय ......
सप्रेम नमोनमः,
अत्र कुशलं .....
....। अहं अत्रैव
.... पठामि। अहं ......
दत्तचितेन करोमि। विभिन्न विषयाणां पाठानां .....
सम्यरूपेण
करोमि । प्रातः काले उत्थाय ...... अध्ययनं करोमि। गणिते काठिन्यम् नास्ति। रात्री
आंग्लभाषां..... च पठामि। भवता चिन्ता न
भवदीयः .....
गोविन्दः
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मञ्जूषा
तत्रास्तु, ध्यानेन, गृहकार्य, भ्रातः, आवृत्ति, संस्कृतस्य, हिंदी-भाषां, अनुजः,
१०/१०/२००६, करणीया
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अपभ्रंश भाषा का विकास 500 ई० से लेकर 1000 ई० के मध्य हुआ और इसमें साहित्य का आरंभ 8वीं सदी (स्वयंभू कवि) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा।
अपभ्रंश (अप + भ्रंश + घञ) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है 'पतन' किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है- प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
प्रमुख रचनाकार : स्वयंभू- अपभ्रंश का वाल्मीकि ('पउम चरिउ' अर्थात राम काव्य), धनपाल ('भविस्सयत कहा'- अपभ्रंश का पहला प्रबंध काव्य), पुष्पदंत ('महापुराण', 'जसहर चरिउ
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