English, asked by gcviyas1954, 3 months ago

स्वभाव कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए क्लास सिक्स हिंदी​

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Answered by diyarajvanshi7
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लेखक कहता है कि सारा संसार काँच के महल जैसा है। जिस प्रकार, काँच के महल में अपना रूप साफ-साफ दिखाई देता है, उसी प्रकार, हमारी आदत की छाया ही हमें दिखाई देती है। आप अगर खुश हों, तो संसार भी विनम्र भाव और प्रेम से बात करेगा। अगर आप दूसरों की गलतियाँ ही देखते रहेंगे, उन्हें अपना शत्रु समझते रहेंगे, उनकीओर भौंको करेंगे, तो वे भी आपकी ओर गुस्से से दौड़ेंगे अंग्रेजी में एक कहावत है कि अगर आप खुश रहेंगे, तो दुनिया भी आपका साथ देने को तैयार रहेगी। यदि आपको गुस्सा करना और रोना हो, तो दुनिया से दूर किसी जंगल में चले जाना ही कल्याणकारी hoga

व्याख्या – लेखक कहता है कि सारा संसार काँच के महल जैसा है। जिस प्रकार, काँच के महल में अपना रूप साफ-साफ दिखाई देता है, उसी प्रकार, हमारी आदत की छाया ही हमें दिखाई देती है। आप अगर खुश हों, तो संसार भी विनम्र भाव और प्रेम से बात करेगा। अगर आप दूसरों की गलतियाँ ही देखते रहेंगे, उन्हें अपना शत्रु समझते रहेंगे, उनकी (UPBoardSolutions.com) ओर भौंको करेंगे, तो वे भी आपकी ओर गुस्से से दौड़ेंगे अंग्रेजी में एक कहावत है कि अगर आप खुश रहेंगे, तो दुनिया भी आपका साथ देने को तैयार रहेगी। यदि आपको गुस्सा करना और रोना हो, तो दुनिया से दूर किसी जंगल में चले जाना ही कल्याणकारी hoga

काँच के एक विशाल महल में एक कुत्ता घुस आया और जोर से भौंकने लगा। काँच होने से बहुत सारे कुत्ते उसे अपने ऊपर भौंकते दिखाई पड़े। वह उन पर झपटा, तो वे भी झपटे। अन्त में, कुत्ता गश खाकर गिर पड़ा। तभी दूसरा कुत्तों आया। वह प्रसन्नता से उछला, कूदा, अपनी ही छाया से खुश हुआ और फिर पूँछ हिलाते हुए बाहर चला गया।

दुनिया काँच के महल जैसी है। अपने स्वभाव की छाया ही उस पर पड़ती है। आप भले तो जग भला। अगर आप हँसेंगे, तो दुनिया आपके साथ हँसेगी; परन्तु आपके साथ रोएगी कभी नहीं । अमेरिकन राष्ट्रपति लिंकन की सफलता का रहस्य यह था कि उन्होंने दूसरों की अनावश्यक नुक्ताचीनी से किसी का दिल कभी नहीं दुखाया।हमें दूसरों के दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करनी चाहिए; क्योंकि शहद की एक बूंद ज्यादा मक्खियों को आकर्षित करती है, बजाय एक सेर जहर के। लोग दूसरों की आँखों के तिनके तो देखते हैं, परन्तु अपनी आँखों के शहतीर नहीं देखते। दूसरों को सीख देना आसान है, लेकिन अपने आदर्शों पर चलना बहुत कठिन है। हमें निन्दक को दूर न कर उसे सम्मान देना चाहिए, क्योंकि वह हमारी गलतियों की ओर ध्यान दिलाकर हम पर उपकार ही करता है। इसके प्रतिकूल गलती करने कलों का अपमान न कर हमें प्रेम और सहानुभूति के व्यवहार से। उसे सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। गाँधी जी हँसकर, मीठी चुटकियाँ लेकर दूसरे की कड़ी-से-कड़ी आलोचना कर देते थे। जिनकी कहीं भी नहीं पटती थी, वे गाँधी जी के पुजारी बन जाते थे।

मनुष्य को व्यवहार-कुशल होना चाहिए। जानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं और अनुकूल प्रतिक्रिया करते हैं। हमें अपने आदर्श, आचार-विचार के साथ-साथ दूसरों के साथ प्रेम, सहानुभूति और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। यदि ज्ञानी मनुष्य स्वयं को सर्वज्ञ समझे, तो वह सबसे बढ़कर मूर्ख है।

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