Hindi, asked by rameshwari2317, 7 months ago

स्वच्छ gaon Yojana पर निबंध ​

Answers

Answered by NehaKhaire
0

Answer:

you can get it on goggle

hope you will get the answer

Answered by mahi735
1

Answer:

please mark me as brainliest and follow me

Explanation:

देश का आर्थिक विकास नागरिकों के आर्थिक विकास पर टिका है। लेकिन जब नागरिकों के एक बड़े समूह का विकास धीमा पड़ जाए या कुछ के लिए रुक जाए, तो क्या होगा? पूरे आर्थिक विकास, जिसे हम जीडीपी भी कहते हैं, के बढ़ने की दर पर असर पड़ेगा. ये बात और भी गम्भीर हो जाती है जब नागरिकों का एक बड़ा समूह गाँवों में रहता हो।

वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि देश में 5.97 लाख (पूर्ण संख्या- 5,97,608) से भी ज्यादा आबाद गाँव हैं। इन गाँवों में 83.37 करोड़ (पूर्ण संख्या- 83,37,48,852 लोग रहते हैं। अब एक नजर राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (National Sample Survey or NSS) के नतीजों पर जो बताते हैं कि 59.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में शौचालय नहीं हैं। यानी ये परिवार खुले में शौच करने के लिए विवश हैं।

खुले में शौच और आर्थिक विकास के बीच क्या सम्बन्ध है? खुले में शौच, बीमारी को खुला न्यौता है। उस पर जब बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी हो तो बीमारी बढ़ेगी ही। काम पूरी तरह से या ठीक ढंग से नहीं करने का कारण बनती है बीमारी। इसका असर होता है उत्पादकता पर। अब यदि ऐसे बीमारों की संख्या ज्यादा होगी उत्पादकता में बड़े पैमाने पर कमी होगी। ये कमी केवल परिवार, समाज, गाँव, कस्बे, जिला या राज्य पर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के आर्थिक स्थिति पर असर डालती है।

याद कीजिए बापू को। करीब 89 वर्ष पहले ‘नवजीवन (24 मई,1925)’ में उन्होंने लिखा कि हमारी कई बीमारियों का कारण हमारे शौचालयों की स्थिति और किसी जगह व हर जगह शौच करने की बुरी आदत है। बाद में उन्होंने ये भी कहा कि जहाँ स्वच्छता होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। बीते दिनों, इसी बात को आगे बढ़ाते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री ने कहा, “स्वच्छता और भक्ति भाव से सबसे बड़ा लाभ अच्छी सेहत के रूप में मिलता है। हमारे देश में ज्यादातर आम बीमारियाँ ऐसी हैं जो स्वच्छ माहौल में कतई नहीं फैल सकती हैं। अगर हम इसे सफल क्रान्ति में तब्दील कर देते हैं तो इलाज पर लोगों का खर्च काफी कम हो जाएगा तथा इस तरह से वे अपनी बचत का कहीं और बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकेंगे।”

स्वच्छता को आप कैसे परिभाषित करेंगे? 2011 में जारी एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक भारत में अपर्याप्त स्वच्छता के आर्थिक प्रभाव (इकोनॉमिक इम्पेक्ट ऑफ इनएडिक्वेट सेनिटेशन इन इंडिया) है, कहता है कि स्वच्छता दरअसल, मानव मलमूत्र, ठोस कचरा, और गन्दे पानी की निकासी के प्रबन्धन का निष्कर्ष है। यह रिपोर्ट विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों की वित्तीय सहायता और विश्व बैंक के प्रबन्धन के तहत चल रहे वॉटर एण्ड सेनिटेशन प्रोग्राम ने तैयार की है। यह रिपोर्ट मानव मलमूत्र के बेहतर प्रबन्धन और उससे जुड़े स्वास्थ्य चलन पर केन्द्रित है। इसके पीछे दलील दी गई कि ऐसा करने के पीछे मंशा भारतीयों और खासकर गरीब भारतीयों पर स्वास्थ्य की लागत को खास महत्व देना है। वैसे स्वच्छता के दूसरे कारकों का महत्व कम नहीं है। ये बात किसी से छिपी नहीं कि ज्यादातर गरीब भारतीय कहाँ रहते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक अपर्याप्त स्वच्छता की वजह से वर्ष 2006 में 2.44 खरब रुपए या प्रति व्यक्ति 2,180 रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया। ये सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के बराबर है। इसमें स्वास्थ्य पर होने वाला असर अकेले 1.75 खरब रुपए (कुल असर का 72 प्रतिशत) की हिस्सेदारी रखता है। कुल नुकसान में चिकित्सा पर होने वाले खर्च का अनुमान 212 अरब रुपए और बीमार होने से उत्पादकता के नुकसान का अनुमान 217 रुपए लगाया गया।

रिपोर्ट ने अपर्याप्त स्वच्छता से होने वाले असर को चार वर्गों में बाँटा गया है। पहला असर स्वास्थ्य से जुड़ा है। इसमें डायरिया और दूसरी बीमारियों से बच्चों की मौत शामिल है। इसके अलावा, चिकित्सा पर होने वाले खर्च और बीमारी की सूरत में मरीज और तीमारदारों की उत्पादकता में कमी का जिक्र है। दूसरा असर पीने के पानी को लेकर है जिसमें पानी पीने लायक बनाने व बोतलबन्द पानी खरीदने पर खर्च और दूर से पानी लाने पर समय का नुकसान शामिल है।

तीसरा असर स्वच्छता की सुविधाओं के इस्तेमाल तक पहुँचने में लगने वाले समय को लेकर है। सामुदायिक शौचालय के इस्तेमाल या खुले में शौच जाने में समय लगता है। इसके साथ ही स्त्रियों के लिए विद्यालयों में शौचालय नहीं होने से पढ़ाई-लिखाई छोड़ने का नुकसान है। चौथा असर, ग्रामीण पर्यटन को लेकर है। अपर्याप्त स्वच्छता की वजह से पर्यटकों की संख्या तो कम होती है जिससे आमदनी कम होगी। इसके साथ ही विदेशी सैलानियों के बीच पेट की बीमारी मुमकिन है, जिससे वो यहाँ आने से हिचकेंगे।

रिपोर्ट में स्वच्छता पर निवेश के फायदे की भी चर्चा की गई। विभिन्न अध्ययनों के हवाले से कहा गया कि अतिरिक्त स्वच्छता और साबुन से हाथ धोने जैसे साफ-सफाई के तरीके अपनाए जाने से 2006 में ही अकेले 3.46 लाख मौतें नहीं होती, 33.8 करोड़ बीमारी के मामले नहीं आते और कम से कम 1.7 अरब कार्यदिवस बचाए जा सकते थे। यह भी अनुमान लगाया गया कि 1.48 खरब रुपए का सालाना आर्थिक फायदा होता, जबकि प्रति व्यक्ति फायदा 1,321 रुपए का होता।

इस बात को आगे बढ़ाते हुए 2 अक्टूबर को स्वच्छता अभियान की शुरुआत के मौके पर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हवाले से कहा कि गन्दगी के कारण हर वर्ष भारत के प्रत्येक नागरिक को करीब 6,500 रुपए का अतिरिक्त नुकसान झेलना पड़ता है। उन्होंने ये भी कहा कि अब अगर सुखी घर के लोगों को निकाल दिया जाए तो ये औसत 12-15 हजार रुपए हो सकती है।

Similar questions