स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन की कुंजी है। IN SUNSKRUIT
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सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम् ।
योऽर्थे शुचिर्हि सः शुचिर्न मृद्वारिशुचिः शुचिः ॥106॥
(सर्वेषाम् एव शौचानाम् अर्थ-शौचं परं स्मृतम्, यः अर्थे शुचिः हि सः शुचिः न मृद्-वारि-शुचिः शुचिः ।)
सभी शौचों, शुचिताओं, यानी शुद्धियों में धन से संबद्ध शुचिता ही वास्तविक शुद्धि है । मात्र मृदा-जल (मिट्टी एवं पानी) के माध्यम से शुद्धि प्राप्त कर लेने से कोई वास्तविक अर्थ में शुद्ध नहीं हो जाता ।क्षान्त्या शुद्ध्यन्ति विद्वांसो दानेनाकार्यकारिणः ।
प्रछन्नपापा जप्येन तपसा वेदवित्तमाः ॥107॥
(क्षान्त्या शुद्ध्यन्ति विद्वांसः दानेन अकार्य-कारिणः प्रछन्न-पापा जप्येन तपसा वेद-वित्तमाः ।)
विद्वज्जन क्षमा से और अकरणीय कार्य कर चुके व्यक्ति दान से शुद्ध होते हैं । छिपे तौर पर पापकर्म कर चुके व्यक्ति की शुद्धि मंत्रों के जप से एवं वेदाध्ययनरतों का तप से संभव होती है