सुवचन के आकार िर कहानी लेखन ।
िरद्वहत सद्वरस कमस नलह भाई
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एक गांव था। वहां पर बहुत से बड़े-बड़े ज्ञानियों की धर्म सभा - हो रही थी। पास ही एक बड़ी सी नदी बह रही थी। वर्षा काल - का समय था । एकाएक उस नदी में पानी बढ़ने लगा | उस नदी किनारे से एक देहाती अपने गांव की ओर लौट रहा था । एकाएक उसका पैर फिसला और वह देहाती नदी में गिर पड़ा तथा "बचाओ-बचाओ" चिल्लाने लगा। इस सभा में बहुत से ऐसे लोग बैठे हुए थे जिन्हें तैरना आता था परंतु अपनी जान बाजी लगाने कोई भी आगे नहीं आया। उसी समय सामने से बैलगाड़ी लेकर एक किसान आ रहा था, उसे तैरना आता था । जब उसने यह दृश्य देखा तो आव देखा न ताव तुरंत नदी में कूद पड़ा और डूबने वाले उस आदमी को पकड़ कर किनारे ले आया । इस तरह उसने उसकी जान बचा ली। सभा के कई व्यक्तियों ने उसे सराहा और उससे पूछा कि 'तुम किस धर्म के हो ?' उसने कहा "दूसरों का भला करना यही मेरा धर्म है", क्योंकि दूसरे की भलाई से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता। बड़े-बड़े ज्ञानियों के सिर उसके सामने झुक गए । तुलसीदास जी ने समे की उत्कृष्ट परिभाषा दी है कि " परहित सरिस धर्म नहीं । पर पीड़ा सम नहिं अधमाई || अर्थात दूसरे का भा के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरे को पीड़ा पहुंचाने से बढ़कर कोई अधर्म नहीं है | }
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