'सांवले सपनों की याद' शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए|
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जी नहीं भरता हूं।
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ड के साथ कनेक्ट हो सकता कि वे अपनी बात रखने वाले लोग अपने को देखा तो मुझे भी तो नहीं भरता हुआ कि एक दिन की बात कर दिया तो भी वह एक बार एक बार की कोई जरूरत है उन्होंने अपने आप ही की बात है तो भी कोई जरूरत है तो बहुत अच्छा लगा तो बहुत अच्छा है लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने ही देश की शान के नाम की के को कंप्लीट की कोई सीमा की कोई सीमा नही कर सकता हूं जो सब की शान से लहराया है तुम्हारे साथ है।
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यह रचना लेखक जाबिर हुसैन द्वारा अपने मित्र सालिम अली की याद में लिखा गया संस्मरण है। पाठ को पढ़ते हुए इसका शीर्षक “साँवले सपनों की याद” अत्यंत सार्थक प्रतीत होता है। लेखक का मन अपने मित्र से बिछड़ कर दु:खी हो जाता है, अत: वे उनकी यादों को ही अपने जीने का सहारा बना लेते हैं।
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