स्वमातृभाषया सप्रसङ्ग व्याख्यायताम्
(क) मनोरथाय नाशसे.........दु:खाय परिवर्तते।
(ख) अर्धपीतस्तनं.........बलात्कारण कर्षति।
(ग) किं न खलु बालेऽस्मिन् ...........मा वत्सलयति।
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(क) प्रसङ्ग- प्रस्तुत पद्य एकादशी कक्षा की संस्कृत पाठ्यपुस्तक 'भास्वती भाग-1' में संकलित अध्याय 'वीरः सर्वदमनः' से उद्धृत है। यह अध्याय महाकवि कालिदास द्वारा रचित विश्वविख्यात नाटक 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' के सप्तम अंक से संकलित है।
देवासुर युद्ध से लौटते हुए दुष्यन्त ऋषि मारीच के आश्रम में विश्राम के लिए रुके हैं और अपने औरस विस्मृत पुत्र सर्वदमन को देखकर उनकी बाँहें फड़कने लगती हैं, तब दुष्यन्त सोचते हैं :
व्याख्या-
देवासुर संग्राम में विजय प्राप्त कर लौटते हुए दुष्यन्त जब मरीचि ऋषि के आश्रम में पहुँचते हैं, तो को दाहिनी भुजा फड़कने लगती है। तब दुष्यन्त कहते हैं कि शकुन्तला की प्राप्ति स्वरूप अभिलाषा के पूर्ण होने की कोई आशा नहीं है। अत: हे बाहु! व्यर्थ में क्यों फड़क रहे हो। जिन कल्याणकारी वस्तुओं का पहले तिरस्कारपूर्वक त्याग कर दिया जाता है, वे पुनः अत्यन्त दु:खपूर्वक ही प्राप्त होती हैं।
(ख) प्रसङ्ग-
प्रस्तुत पद्य एकादशी कक्षा की संस्कृत पाठ्यपुस्तक 'भास्वती भाग-1' में संकलित अध्याय 'वीरः सर्वदमनः' से उद्धृत है। यह अध्याय महाकवि कालिदास द्वारा रचित विश्वविख्यात नाटक 'अभिज्ञानशाकुन्तलम् के सप्तम अंक से संकलित है।
बालक सर्वदमन खेलने के लिए सिंह-शावक को पकड़ लेता है, तब की बात करते हुए कहते हैं :
व्याख्या-
आश्रम में पहुंचे राजा दुष्यन्त तपस्विनियों की आवाज सुनकर जब उस ओर देखते हैं तो असाधारण गुणों से युक्त एक बालक दिखाई पड़ता है। वह बालक एक सिंहशावक को, जिसने अपनी माता की छाती से अभी आधा हा दूध पिया था तथा खींचने की रगड़ से जिसके कन्धे के बाल इधर-उधर हो गए थे,अपनी ओर बलपूर्वक खींचता है। इस पद्य के माध्यम से उस बालक सर्वदमन की निडरता की ओर संकेत किया गया है।
(ग) प्रसङ्ग-
प्रस्तुत पद्य एकादशी कक्षा की संस्कृत पाठ्यपुस्तक ‘भास्वती भाग-1' में संकलित अध्याय वीर: सर्वदमनः' से उद्धृत है। यह अध्याय महाकवि कालिदास द्वारा रचित विश्वविख्यात नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम्' के सप्तम अंक से संकलित है।
राजा दुष्यन्त के संज्ञान में कोई पुत्र नहीं है, पर सर्वदमन को देखकर उनके मन में ऐसी भावना का संचार होने लगता है।
व्याख्या-
जब राजा दुष्यन्त उस बालक की असाधारण चेष्टाओं को देखते हैं, तब उनके मन में उस बालक प्रति अत्यधिक स्नेह उमड़ने लगता है। राजा दुष्यन्त कहते हैं कि, न जाने क्यों इस बालक के लिए मेरे मन में आत्मीय या सगे पुत्र के समान स्नेह उमड़ रहा है। निश्चय ही मेरा नि:सन्तान होना मुझे स्नेह से युक्त कर रहा है।
अतिरिक्त जानकारी :
प्रस्तुत प्रश्न पाठ वीरः सर्वदमनः (वीर सर्वदमन) से लिया गया है। कवि कुलशिरोमणि महाकवि कालिदास रचित विश्व-प्रसिद्ध नाटक "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" के सातवें अंक से इस पाठ का संकलन किया गया है। नाटक की मुख्य कथा महाभारत के शाकुन्तलोपाख्यानम् से अवतरित है।
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