स्वमत: पंतांनी भीष्मप्रतिज्ञा करण्यामागचा हेतू लिहा.
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महाभारत आदिपर्व में उल्लेख है कि वैशंपायनजी जन्मेजय को कथाक्रम में बताते हैं कि इक्ष्वाकु वंश में महाभिष नामक राजा थे। उन्होंने अश्वमेध और राजसूय यज्ञ करके स्वर्ग प्राप्त किया। एक दिन सभी देवता आदि ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित हुए। वायु के वेग से श्रीगंगाजी के वस्त्र उनके शरीर से खिसक गए। तब सभी ने आंखें नीची कर लीं, किंतु महाभिष उन्हें देखते रहे। तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि तुम मृत्युलोक जाओ। जिस गंगा को तुम देखते रहे हो, वह तुम्हारा अप्रिय करेगी। इस प्रकार उनका जन्म राजा प्रतीप के रूप में हुआ।
प्रतापी राजा प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके तप, रूप और सौंदर्य पर मोहित होकर गंगा उनकी दाहिनी जंघा पर आकर बैठ गईं और कहने लगीं, 'राजन! मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूं।'
इस पर राजा प्रतीप ने कहा, 'गंगे! तुम मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी हो, जबकि पत्नी को तो वामांगी होना चाहिए, दाहिनी जंघा तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर सकता हूं।' यह सुनकर गंगा वहां से चली गईं।'