स्वर्ग बना सकते हैंकववता पर आधाररत प्रश्न-उत्तर
(I) धर्ग राज यह हैभूमर् ककसी की
नह ीं क्रीत है दासी
है जन्र्ना सर्ान परस्पर
इसके सभी ननवासी ।
सबको र्ुक्त प्रकाश चाहहए
सबको र्ुक्त सर्ीरण
बाधारहहत ववकास, र्ुक्त
आशींकाओीं से जीवन।
(क)कौन, ककसे उपदेश दे रहा है? वक्ता ने उसे धर्गराज क्यों कहा है ? उसने भूमर् और
भूमर् पर बसने वाले र्नुष्यों के सबीं ींध र्ेंक्या कहा है ?
(ख) उपयुगक्त पींक्क्तयों र्ें 'भूमर्’ के सींबींध र्ें क्या कहा र्या है तथा क्यों ?
(र्) कवव के अनुसार र्ानवता के ववकास के मलए क्या-क्या आवश्यक है?
(घ) उपयुगक्त पींक्क्तयों द्वारा कवव क्या सींदेश दे रहा है?
(II) लेककन ववघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अडे हुए हैं
र्ानवता की राह रोक कर पवगत अडे हुए हैं।
न्यायोचचत सुख सुलभ नह ीं
जब तक र्ानव -र्ानव को
चैन कहाीं धरती पर तब तक
शाींनत कहाीं इस भव को ?
(क)' लेककन ववघ्न अनेक अभी इस पथ पर अडे हुए हैं' - कवव ककस पथ की बात कर रहा
है? उस पथ र्ें कौन-कौन सी बाधाएीं हैं?
(ख) धरती पर चैन और शाींनत लाने के मलए क्या आवश्यक है ? स्पष्ट कीक्जए ।
(र्) उपयुगक्त पींक्क्तयों का सदीं ेश स्पष्ट कीक्जए ।
(घ) उपयुगक्त पींक्क्तयों का भावाथग स्पष्ट कीक्जए ।
(III) जब तक र्नुज र्नज का यह ु
सुख भार् नह ीं सर् होर्ा, शमर्त न होर्ा कोलाहल
सींघर्ग नह ीं कर् होर्ा ।
उसे भूल वह फींसा परस्पर
ह शींका र्ें भय र्ें
लर्ा हुआ केवल अपने र्ें
और भोर् सींचय र्ें ।
(क) शमर्त न होर्ा कोलाहल ' - कवव का सींके त ककस प्रकार के कोलाहल की ओर है ? यह
कोलाहल ककस प्रकार शाींत हो सकता है?
(ख) आज र्ानव के सींघर्ग का र्ख्ु य कारण क्या है? कवव के इस सींबींध र्ें क्या ववचार हैं?
(र्) कवव के अनुसार आज का र्नुष्य कौन सी बात भूल र्या हैतथा वह ककस प्रववृत्त र्ेंफींस
र्या है?
(घ)‘ लर्ा हुआ केवल अपने र्ेंऔर भोर् सींचय र्ें' - पींक्क्त का आशय स्पष्ट कीक्जए ।
(Iv) प्रभुके हदए हुए सुख इतने
है ववकीणग धरती पर,
भोर् सकें जो
उन्हें जर्त र्ें ,
कहाीं अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक- सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहे तो पल र्ें इस धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।
(क) ' प्रभुके हदए हुए सुख इतने हैंववकीणग धरती पर ' पींक्क्त द्वारा कवव क्या कहना चाहते हैं
?
(ख) 'कहाीं अभी इतने नर ' पींक्क्त द्वारा कवव क्या सर्झाना चाहता है और क्यों ?
(र्) उपयुगक्त पींक्क्तयों का भावाथग स्पष्ट कीक्जए ।
(घ) कवव के अनुसार इस पथ्ृवी को स्वर्ग ककस प्रकार बनाया जा सकता है?
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ववकीणग धरती पर,
भोर् सकें जो
उन्हें जर्त र्ें ,
कहाीं अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक- सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहे तो पल र्ें इस धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।
(क) ' प्रभुके हदए हुए सुख इतने हैंववकीणग धरती पर ' पींक्क्त द्वारा कवव क्या कहना चाहते हैं
?
(ख) 'कहाीं अभी इतने नर ' पींक्क्त द्वारा कवव क्या सर्झाना चाहता है और क्यों ?
(र्) उपयुगक्त पींक्क्तयों का भावाथग स्पष्ट कीक्जए ।
(घ) कवव के अनुसार इस पथ्ृवी को स्वर्ग ककस
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