स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे पर निबंध
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स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे (निबंध)
‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे’ यह प्रसिद्ध नारा भारत के स्वाधीनता संग्राम के समय भारत के स्वाधीनता सेनानी लोक बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक ने दिया था।
लोकमान्य तिलक कांग्रेस पार्टी के गरम दल के नेता थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। वह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, वकील और राष्ट्रवादी थी। वह उग्र राष्ट्रवाद के समर्थक थे यानि वह स्वतंत्रता को लड़कर लेने के पक्षधर थे। बचपन से ही उनके मन में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल होने लगी थी। ब्रिटिश शासन के दौरान वे स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन में कूद पड़े।
उन्होंने मराठी में एक नारा दिया कि “स्वराज माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे, आणि तो मी मिळवणारच” अर्थात “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर रहूंगा” ।
वे विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय के साथ मिलकर लाल-बाल-पाल नाम से मशहूर थे। उनका मत यह था कि स्वराज एक ऐसा शब्द है जिसका तात्पर्य है, स्वशासन यानि स्वयं का शासन स्वयं पर ही। इस संसार में कोई भी मनुष्य स्वतंत्र रूप में ही जन्म लेता है। इसलिए स्वतंत्र रहना उसका जन्मसिद्ध अधिकार होता है और यदि कोई शक्ति किसी पर गुलामी थोपती हो तो उस मनुष्य का कर्तव्य है कि वो अपनी स्वतंत्रता के अधिकार के लिए लड़े और अपनी स्वतंत्रता के अधिकार को लेकर रहे।
उस भारत अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। लोकमान्य तिलक ने ये नारा उस भारतीयों में स्वतंत्रता के प्रति जागरुकता और जोश भरने के लिये दिया था ताकि भारतीय में स्वतंत्रता की भावना प्रबल हों, और वे दुगुने जोश से अंग्रेजों से अपनी स्वतंत्रता पाने के लिये जुट जायें। उनके इस नारे ने तत्कालीन भारतीय जनता में जोश भर दिया था।
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aggatsysdhbsnhegisdjheueydgsghsydududidx hai