स्वर' (कविता सं.
चंद्रलोक या मंगल ग्रह पर चढ़ें किसी भी यान से,
किंतु न हो संबंध विनाशक अस्त्रों का इनसान से ।
पद्य
प्रस्तुत नई
साँस-साँस जीवनपट बुनकर प्राणों का तन ढाँकती,
सदाचार की शुभ्र शलाका मन सुंदरता आँकती।
प्रतिभा का पैमाना मेधा की ऊँचाई नापता,
डॉ.दीक्षित जी
विज्ञान की म
है। आपका
ज्ञान-विज्ञान के
आसमान कोना
शस्त्रास्त्र से मान
आवश्यक है
होगा जब समा
मानवता का मीटर बन, मन की गहराई मापता।
बढ़ेगा।
आत्मा को आवृत्त कर दें स्नेह प्रभा परिधान से,
करें अर्चना हम सब मिलकर वसुधा के जयगान से।
कविता में से सुरक्षा का समानार्थी शब्द क्या आएगा
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lekhila ne gilu path ke armbh me hi sonjuhi ki pili Kali ko kyo yad Kiya he ulekh kijiye
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