स्वर में पावक यदि नहीं, वृथा वंदन है। में कौन सा अलंकार है?
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स्वर में पावक यदि नहीं, वृथा वंदन है। में कौन सा अलंकार है?
स्वर में पावक यदि नहीं वृथा वंदन है,
वीरता नहीं तो सभी विनय क्रंदन है।
इन पंक्तियों रूपक अलंकार प्रकट हो रहा है।
यहाँ पर कवि का कहने का तात्पर्य है कि वीर की वाणी में अग्नि की ध्वनि अवश्य होनी चाहिए। यदि वाणी में अग्नि जैसा तेज नही होगा तो उसकी वंदना व्यर्थ है, और ऐसे व्यक्ति को वीर कहना उचित नही। यद्यपि विनम्रता व्यक्ति का गुण है लेकिन विनम्रता के साथ-साथ वीरता भी अनिवार्य है, वीरता रहित केवल विनम्रता के साथ बोलने वाली वाणी रुदन करती यानि दयनीय स्वर जैसी प्रतीत होती है।
इन पंक्तियों में कवि ने स्वर यानी वाणी की को अग्नि के समान माना है, इसलिए यहां पर रूपक अलंकार प्रकट हो रहा है। रूपक अलंकार की परिभाषा के अनुसार जब किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के विशेष की गुणों की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानि उपमेय और उपमान के बीच की भिन्नता को मिटा दिया जाए तो वहां रूपक अलंकार होता है।
यहां पर वीरों की वाणी और अग्नि के बीच की भिन्नता को मिटा कर दोनों को एकाकार कर दिया गया है, इसलिए यहां पर रूपक अलंकार है।
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