स्वरचित कविता hindi में
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Answer:
चाँद को कुछ हो गया है।
मैंने देखा था पिछली पूर्णिमा को
तब इसका मुंह टेढ़ा नहीं था
अब हो गया है।
पहले तो यह पूरा था
फिर आधा बचा
अब तो बस थोड़ा रह गया है।
चांद को कुछ हो गया है।
मैं परेशान था कि एक दिन यह चला जाएगा।
किसी ने कहा डांट कर तू पागल है
यह तो अगली पूर्णिमा को फिर पूरा आएगा।
पर वह मेरी परेशानी का कारण ही नहीं समझे
मैं परेशान यूं नहीं था कि
चाँद का मुंह टेढ़ा हो रहा है।
या कि वह घटकर थोड़ा हो रहा है।
या कि धरती पर अंधेरा हो रहा है।
मेरी परेशानी का कारण तो तारे हैं
जिन्हें एक रात बिना चाँद के रहना होगा।
कवि केशव प्रेम, स्वरचित कविताएँ 1 टिप्पणी अप्रैल 15, 2020 1 Minute
मन मोती
मोती मोती मोती मन मोती रे
छोटी मोटी बातें रहें होती रे।
सुख दुःख आते जाते, काहे रोती रे?
मोती मोती मोती मन मोती रे।
जहर ये जीना है
चैन जख्मों ने छीना है
जानो ज़ख्म जिसे वही है जीवन की ज्योति रे।
मोती मोती मोती मन मोती रे।
किस्मत खोटी है
लकीरें थोड़ी छोटी हैं
हाथों की लकीरें क्यूं माथे पे ले ढोती रे?
मोती मोती मोती मन मोती रे।
जीवन ये मेला है
माना मन मेले में अकेला है
फिर ऐसे अकेले में, ख़ुद को क्यूं खोती रे?
मोती मोती मोती मन मोती रे।
Explanation:
Mark me as a brilliant
रोटी
राम के नाम पे
माँगी हुई रोटी
भोले भालों से
चुराई हुई रोटी
लाठी के ज़ोर पे
छीनी हुई रोटी
मीठी है खुद की
कमाई हुई रोटी ।
गरम गरम
सेंकी हुई रोटी
अच्छी भली
फेकी हुई रोटी
प्यारी है
रात की
बचाई हुई रोटी।
महलों मे मख्खन
लगाई हुई रोटी
होटल की प्लेट में
सजाई हुई रोटी
अच्छी है
माई के हाथ की
बनाई हुई रोटी ।