स्वरचित कविता लिखें।
४ अनुच्छेद में।
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जीते जीते जिंदगी
जीते जीते जिंदगी
जाने कब जुआ हो गए।
समझा था जिसको आग
एक फूंक में धुआं हो गई।
सब कुछ लगाया दांव पर
सब कुछ गया मैं हार।
मन रहा पाषाण सा
फिर खड़ा बाजार।
गलत कौन सी बाजी
गलत कौन सा था दाव।
कौन सा सबसे पुराना
सब से गहरा कौन सा था घाव।
शायद कि किस्मत ही बुरी हो
या विरासत में मिली हो हार।
पर कर भाग्य पर इतना भरोसा
किसका हुआ उद्धार।
कि जब तक जान है बाकी
कि जब तक आन है बाकी।
चलो एक बाजी और खेले
चलो एक झोंका और झेलें
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