"स्वस्थ जीवन में योग की भूमिका" इस विषय पर सचित्र नारा
लेखन (शब्द सीमा 20 से 30 शब्द)
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योग का अध्ययन-अध्यापन ऋषियों तथा महर्षियों का विषय रहा है। योग एक कठिन विषय है, इसलिए हमारे प्राचीन युग के गुरुजन इस विद्या को जनसाधारण को देने में हिचकिचाते थे।
वे हमेशा योग्य शिष्यों को जब परख लेते थे तभी उन्हें योग के रहस्यों से अवगत कराते थे। इसी वजह से वे इस विद्या में इतने अधिक निपुण हो गए थे कि उन्हें लोक तथा लोकोत्तर बातें जानने में तथा इच्छानुसार जीने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
आज हमारे पास उपलब्ध शास्त्र के रूप में केवल पतंजलि योगशास्त्र है और उम्र भी औसतन 70-75 वर्ष की है, जिसमें से कार्यशील उम्र तो शायद 20-25 वर्ष ही बची रहती है।
इतने कम समय में हम हमारे पूर्वज योगीराजों का सही इतिहास और कर्मयोग समझ लें, वहीं हमारे लिए पर्याप्त है। अतः योग को समझना, समझकर आचरण करना ही हमारे लिए श्रेयस्कर है।
हमें एक स्वस्थ व्यक्ति बनना होगा और इसके लिए योगाभ्यास जरूरी है। इसके द्वारा हम स्वस्थ मस्तिष्क व शरीर बनाते हैं। स्वस्थ होने पर ही हम हमारे युग की उपलब्धियों का सही उपयोग करते हुए अपने युग को स्वर्ग के समान बनाने में सफल होंगे।
योगासनों के नियमित अभ्यास से मेरूदंड सुदृढ़ बनता है, जिससे शिराओं और धमनियों को आराम मिलता है। शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं। प्राणायाम द्वारा प्राणवायु शरीर के अणु-अणु तक पहुंच जाती है, जिससे अनावश्यक एवं हानिप्रद द्रव्य नष्ट होते हैं, विषांश निर्वासित होते हैं- जिससे सुखद नींद अपने समय पर अपने-आप आने लगती है।
योगाभ्यासी अपने शरीर की देखभाल को अपना पवित्र कर्तव्य मानता है। योग द्वारा सच्चा स्वास्थ्य प्राप्त करना बिलकुल सरल है। केवल अपनी कुछ गलत आदतों को बदलना पड़ता है, जिनके कारण रोगों का आक्रमण होता है।
अच्छा स्वास्थ्य हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। रोग तो केवल प्राकृतिक नियमों के उल्लंघन, अज्ञान तथा असावधानी के कारण होते हैं। स्वास्थ्य के नियम बिलकुल सरल तथा सहज हैं।