Hindi, asked by raviraj620404, 9 months ago

स्वस्थ मस्तिष्क के लिए क्या होना आवश्यक है?​

Answers

Answered by jaisika19
3

Answer:

तन और मन का गहरा संबंध है। एक स्वस्थ तो दूसरा भी स्वस्थ। एक रोगी , तो दूसरा भी रोगी। दोनों की स्वस्थता एक दूसरे पर निर्भर है। असल में शारीरिक स्थितियों और बाहरी घटनाओं से मन प्रभावित होता है और मानसिक स्थितियों और घटनाओं से तन प्रभावित होता है। ' स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है '- यह अधूरा सत्य है। इसके साथ यह भी जोड़ जाना चाहिए , ' स्वस्थ मन से स्वस्थ शरीर का निर्माण होता है। ' वैसे तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का अद्भुत विकास हुआ है। उसकी सफलताओं और उपलब्धियों पर सभी दांतों तले अंगुलियां दबाते हैं , पर इसके बावजूद दुनिया में बीमार लोगों की कोई कमी नहीं दिखती। नए से नए रोग भी जन्म लेते दिखाई देते हैं। असल में जब तक मानसिक विचारों और भावनाओं में संतुलन नहीं कायम होता और शांति का वातावरण नहीं बनता , तब तक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। संस्कृत साहित्य में कहा गया है - धातुओं से बना हुआ शरीर चित्त के अधीन है। चित्त के दुर्बल और क्षीण हो जाने पर धातुएं भी क्षीण और दुर्बल हो जाती हैं। जैन आगम - स्थानांग सूत्र में रोग उत्पन्न होने के नौ और अकाल मृत्यु के सात कारण बताए गए हैं। इनमें अशुद्ध और तनावग्रस्त मनोभावों का प्रमुख रूप से उल्लेख है। स्थानांग सूत्र में यह बात प्रमुखता से कही गई है कि विचारों और भावनाओं से मानव का स्वास्थ्य बहुत अधिक प्रभावित होता है। अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ सिर्फ अच्छा भोजन करना और एक नियमित दिनचर्या अपनाना भर नहीं है। स्वस्थ मनुष्य वह है जो अपनी शुद्ध प्रकृति में स्थिर होता है। यानी स्वस्थ वह है जो शरीर से ही नहीं , विचारों से भी स्वस्थ है। जिसके त्रिदोष यानी वात , पित्त , कफ संतुलित हों , अग्नि यानी पाचनशक्ति , रक्त मज्जा , मांस आदि धातुएं तथा मल - विसर्जन आदि क्रियाएं सम हों और जिसकी आत्मा , इन्द्रियां व मन प्रसन्न हों , वही स्वस्थ होता है। अच्छे स्वास्थ्य की एक और कुंजी है। यह है प्रसन्नता। प्रसन्नता को विश्व का सबसे श्रेष्ठ रसायन कहा गया है। जो इसका निरंतर सेवन करता है , उसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति का स्वत : विकास होता है। सच तो यह है कि रोग से भी अधिक हम रोग की चिंता से रोगी और दुर्बल बनते हैं। इसलिए जरूरी यह है कि जब भी शरीर पर रोग का आक्रमण हो , हमें विचारों के स्वास्थ्य और उनके संतुलन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। चिंता और भय की तरह क्रोध का भावावेश भी स्वास्थ्य का शत्रु है। दो दिन के ज्वर से जितनी शक्ति नष्ट होती है , तीव्र क्रोध के दो क्षण में उतनी शक्ति नष्ट हो जाती है। क्रोध से रक्तचाप की वृद्धि के साथ हृदय रोग का खतरा भी होता है। इसी तरह भय और भावना से भी स्वास्थ्य बहुत प्रभावित होता है। उसके प्रभाव से अनेक व्यक्ति पागल और रोगी तक बन जाते हैं। स्वास्थ्य पर विचारों के इतने गहरे प्रभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि स्वस्थ जीवन के लिए इलाज और दवा के साथ - साथ विचारों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। एक बार अमेरिका के कृषि मंत्री एंडरसन दिल की बीमारी से पीड़ित हो गए। कई दिनों की चिकित्सा के बाद भी उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। एक दिन अस्पताल में ही रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक पढ़ी जिसमें लिखा था - ' दिल की बीमारी को दिमाग पर हावी नहीं होने देना चाहिए। ' यह वाक्य उनके जीवन का मंत्र बन गया। उसी क्षण उन्होंने अपने दिमाग से रोग की चिंता को दूर कर लिया। इसका परिणाम यह निकला कि थोड़े ही समय में वह बिल्कुल स्वस्थ हो गए। मन से अच्छा महसूस करते हुए रोग की चिकित्सा करने के इस उपाय को ' फेथ - हीलिंग ' कहा जाता है। इस तरह का इलाज आस्था और भावना द्वारा की जाने वाली चिकित्सा का ही एक रूप है। भौतिक चिकित्सा का उपयोग करते हुए भी हमें आध्यात्मिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए। जैन परंपरा में ऐसे अनेक मुनियों के उदाहरण प्राप्त होते हैं , जिनके आधार पर आस्था और भावना द्वारा चिकित्सा की विधि का और अधिक विकास हो सकता है।।।

Hope it helps

Answered by Vijaypatil97669879
4

swasth mastishk k liye sabse pahale Positive Thinking honi bahut jaruri hai

Similar questions