Hindi, asked by pushpa739, 9 months ago

स्वस्थ तथा प्रगतिशील समाज के लिए लड़कों की भूमिका क्या होनी चाहिए​

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Answered by drishtisingh156
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जब हम किसी व्यक्ति, समुदाय, समाज, राज्य या विश्व की चिंताओं के बारे में सोचते हैं तो प्रमुख समस्या के रूप में आज भी रोटी, कपड़ा, मकान और सुरक्षा की समस्या सामने उभरती है। गौण बातों में हम सम्मिलित करते हैं- शिक्षा और स्वास्थ्य। इसके बाद असंख्य बातें और भी होती हैं, जिनको लक्ष्य बना कर समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने दो मसलों शिक्षा और स्वास्थ्य को जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाने में बहुत ही जरूरी माना है और यह समझाने का प्रयास किया है कि उपरोक्त दोनों में यथोचित परिवर्तन करके जीवन के स्तर में पर्याप्त और सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। देखा जाए तो शिक्षा और स्वास्थ्य मात्र चुनावी नारा नहीं हैं और न ही सरकारी नीतियों और अनुदानों पर निर्भर हैं। किसी भी लोकतांत्रिक या लोक-कल्याणकारी राज्य का यह प्रथम दायित्व है कि वह नागरिकों की इन आधारभूत जरूरतों को पूरा करे। पर यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या लोगों की अपनी भूमिका नहीं है? क्या सरकार को अनिवार्य रूप से लोगों की उन जरूरतों को पूरा करना चाहिए?

रोटी, कपड़ा और मकान की बहुत ही जरूरी और आधारभूत समस्याओं के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रश्न को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ये सारी जरूरतें कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ती भी हैं। व्यक्ति और समूचे समाज का जीवन, उसका वर्तमान और भविष्य उसके स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। स्वस्थ रहने के लिए उचित दृष्टिकोण, स्थानीय संसाधन, उपचार और प्रकृति के साथ लयात्मक संबंध बहुत ही जरूरी हैं। यहां उचित दृष्टिकोण से तात्पर्य है- एक संतुलित दृष्टि या वैज्ञानिक दृष्टि।

स्वास्थ्य के समूचे मसले को हम मूलत: दो नजरिए से देखते हैं। पहला, उपचारात्मक और दूसरा, सुरक्षात्मक। पूंजीवाद और वैश्वीकरण के चलते हमारा पूरा स्वाथ्य-चिंतन उपचारात्मक उपायों के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है और सुरक्षात्मक उपाय लगभग नगण्य हो चले हैं। वैश्विक-आर्थिक संस्थाएं, राज्य की मशीनरी और डॉक्टर व चिकित्सा अधिकारी तंत्र उपचारात्मक तरीकों पर ही बल देते हैं क्योंकि इससे उनके आर्थिक हितों की पूर्ति होती है। उनकी चिंता स्वास्थ्य को बनाए रखने की जगह रोक की चिकित्सा को लेकर रहती है। इसमें बाजार तंत्र और अर्थतंत्र की जबर्दस्त सांठगांठ है जिसे आम आदमी अक्सर समझ नहीं पाता

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