स्वतंत्र भारत में पहला विधेयक जमींदारी व्यवस्था में क्या परिवर्तन हुये वर्णन करो
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Explanation:
संविधान बनाते वक्त उसके निर्माताओं को जिन अहम मुद्दों से जूझना पड़ा, उनमें से एक भारत का सामंती सिस्टम था, जिसने स्वतंत्रता से पहले देश के सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह चोट पहुंचाई थी। उस वक्त जमीन का मालिकाना हक कुछ ही लोगों के पास था, जबकि बाकी लोगों की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थीं। इस असमानता को खत्म करने के लिए सरकार कई भूमि सुधार कानून लेकर आई, जिसमें से एक जमींदारी उन्मूलन कानून 1950 भी था। मकानआईक्यू आज आपको इसी अधिनियम की कुछ जरूरी बातों से रूबरू करा रहा है।
एेतिहासिक कानून: 1947 में देश के आजाद होने के बाद जमींदारी उन्मूलन कानून, 1950 भारत सरकार का पहला प्रमुख कृषि सुधार था।
सामाजिक संरचना: मुगलों ने जमींदारों की वंशानुगत स्थिति को सीमित कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने उनका ओहदा बढ़ाते हुए उन्हें राज्यों के अधीनस्थ कर लिया।
इन राज्यों ने की पहल: हालांकि जमींदारी सिस्टम के उन्मूलन की प्रक्रिया संविधान लागू होने से काफी पहले ही हो गई थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, मद्रास, असम और बॉम्बे 1949 में जमींदारी उन्मूलन बिल ले आए थे। इन राज्यों ने प्रारंभिक मॉडल के रूप में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन समिति (इसके अध्यक्ष जीबी पंत थे) की रिपोर्ट का इस्तेमाल किया था। लेकिन जमींदार कोर्ट पहुंचे और कहा कि उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
मौलिक संपत्ति का अधिकार: जब संविधान पास हुआ, उस वक्त संपत्ति का अधिकार आर्टिकल 19 और 31 के तहत मौलिक अधिकारों में की सूची में आता था। लेकिन पहले संशोधन के तहत साल 1951 में सरकार ने मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति को हटा दिया। इससे सरकार के भूमि सुधार कानूनों को फायदा पहुंचा। जमींदारी सिस्टम को खत्म करने में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा।
बेनिफिशरी: इस अधिनियम के मुख्य लाभार्थियों में अधिभोग या उच्च जोतदार थे, जिन्होंने जमींदारों से सीधे जमीन लीज पर ली और उसके आभासी मालिक बन बैठे।
मुआवजा: पूरे देश की राज्य सरकारों ने 1700 लाख हेक्टेयर्स भूमि का अधिग्रहण किया और जमींदारों को मुआवजे के तौर पर 670 करोड़ रुपये दिए। कुछ राज्यों ने फंड बना लिए और जमीन मालिकों को बॉन्ड दे दिए, जिन्हें 10-30 वर्षों बाद मुक्त कराया जा सकता था।
अधिनियम में बचाव का रास्ता: चूंकि भूमि राज्य का विषय है, इसलिए ज्यादातर राज्यों ने जमींदारों को भूमि के एक हिस्से पर खेती करने और उसे अपने पास रखने की इजाजत दे दी। लेकिन जमींदारों ने इसका फायदा उठाया और भूमि पर खुद खेती करनी शुरू कर दी, ताकि राज्य सरकार उनसे जमीन वापस न मांग सकें।
सरकार ने भरा गैप: बाद में आर्टिकल 31(a) , 31(b) और नौंवा शेड्यूल संविधान में जोड़े गए, ताकि जमींदारों को कानूनी सलाह लेने से रोका जा सके। इसके बाद सरकार के कानूनों को चुनौती नहीं दी जा सकती थी। साथ ही राज्यों को कानून बनाने या किसी की संपत्ति या जमीन का अधिग्रहण करने का अधिकार भी मिल गया।
बंधुआ मजदूरी का अंत: जमींदारी उन्मूलन कानून ने बेगारी या बंधुआ मजदूरी को कानूनन अपराध के दायरे में ला खड़ा किया।