स्वतंत्र दिवस पर भाषण in 200 word
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स्वतंत्रता दिवस पर भाषण
सबसे पहले स्टेज पर पहुंचे और मुख्य अतिथियों और शिक्षकों को प्रणाम करें। फिर अपना भाषण शुरू करें।
अपना परिचय दें... यहां मौजूद सभी साथियों को मेरा ढेर सारा प्रेम, मेरा नाम हिमांशु है, मैं कक्षा 6 का छात्र हूं। यहां हम सब स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर एकत्रित हुए हैं। आज हम आजादी के 75 साल का जश्न मना रहे हैं। इस आजादी के भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया। लेकिन भारत की आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में बच्चों का भी कम योगदान नहीं रहा है। अपने खेलने कूदने की उम्र में इन बच्चों ने आजादी की लड़ाई में बड़े साहस के साथ अंग्रेजों के दांत खट्टे किए। इन बच्चों के अंदर देश प्रेम कूटकूट के भरा था। ऐसे ही तीन जांबाजों के बारे में मैं आपको बता रहा हूं, जिन्होंने अपने खेलने की उम्र में देश को आजादी के लिए झोंक दिया।
सबसे पहले हम बात करेंगे शहीद-ए-आजम कहे जाने वाले भगत सिंह के बारे में। कहते हैं कि एक बार भगत सिंह ने बचपन में बंदूक देखी। उन्होंने अपने पिता से पूछा यह क्या है? पिता ने उत्तर दिया अंग्रेजों को भगाने वाला हथियार है। बालक भगत सिंह फौरन बंदूक लेकर खेत में पहुंच गए और मिट्टी खोदकर उसे दबाने लगे। पिता ने आश्चर्य से पूछा बेटा यह क्या कर रहे हो? भगत सिंह बोला बंदूक की फसल उगा रहा हूं। इस से ढेर सारी बंदूकों की खेती होगी और हम अंग्रेजों को देश से भगा पाएंगे। यह सुनकर पिता आश्चर्यचकित रह गए।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह ने मात्र 12 वर्ष के थे। अपने आसपास अंग्रेजों के अत्याचार की बातें वह पहले से ही सुनते आए थे। लेकिन जब इस हत्याकांड का नजारा उन्होंने अपनी आंखों से देखा तो, अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य अंग्रेजों से देश की आजादी का बना लिया है। यही वह घटना थी जिसने मासूम भगत सिंह के दिल और दिमाग में देश को आजाद करने की भावना जगाई। भगत सिंह के घर वाले उनके क्रांतिकारी विचारों से काफी खुश थे, उन्होंने हमेशा बालक भगत सिंह की फिक्र लगी रहती थी। लेकिन उनके क्रांतिकारी विचारधारा पर कोई असर नहीं पड़ा। आखिरकार देश की आजादी के लिए उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने प्राण निछावर कर दिए और देश की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा बने।
अब हम बात करेंगे महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की। देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर नाम का बड़े गर्व से लिया जाता है। जब वह बहुत छोटे थे तब वह देश प्रेम की भावना से भरे बैठे थे। वह बचपन से ही बहुत साहसी व निडर थे। बचपन में ही अपना घर छोड़कर बनारस आ गए। वर्ष 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े, उस समय वह मात्र 14 साल के थे। लेकिन इसी नन्ही उम्र में वह असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने और क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते रहे।
अंग्रेजी सरकार को भारत में क्रांति फैलाने का डर था, इसलिए उन्होंने नन्हें चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया। उन्हों मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। जब मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेलखाना बताया। उनकी कम उम्र को देखते हुए उन्हें जेल में नहीं डाला गया। लेकिन 15 कोड़े लगाने की सजा हुई, वह हर कूड़े की मार पर वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय के नारे लगाते रहे। इसी घटना के बाद चंद्रशेखर का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ गया।
अंत में हम बात करेंगे डॉ राम मनोहर लोहिया की, लोहिया जी को देश से अपार प्रेम था। उनके माता पिता पेशे से अध्यापक थे। जब वह बहुत छोटे थे, तभी उनकी मां का स्वर्गवास हो गया था। पिताजी से ही नन्हे राम मनोहर को स्वतंत्रा आंदोलन में भाग लेने की प्रेरणा मिली। उनके पिता गांधी जी के अनुयाई थे। जब वह गांधी जी से मिलने जाते थे तो, राम मनोहर को भी साथ लेकर जाते थे। नन्ही उम्र में राम मनोहर गांधी जी के व्यक्तित्व और सोच से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जीवन भर गांधीजी के आदर्शों का समर्थन किया। लोहिया जी ने कम उम्र में विभिन्न रैलियों और विरोध सभाओं के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित 'साइमन कमीशन' का विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। देश प्रेम की भावना राममनोहर लोहिया में कूट-कूट के भरा था।
मुझे ये मौका देने के लिए आप सबका बहुत आभार
जय हिंदी जय भारत, वंदेमातरम् भारत माता की जय
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I hope this is helpful for u