स्वतंत्रता आंदोलन में तिलक की भूमिका का उल्लेख करें
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लोकमान्य तिलक जी ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ।
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तिलक गरम-दल के नेता तथा उग्रवादी थे। उन्होंने कहा,स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा। वे उदारवादियों की भिक्षावृति के कट्टर विरोधी थे। उनकी दृढ मान्यता थी कि स्वराज्य अपने आप नहीं आयेगा वरन् अँग्रेजों को छीनना पङेगा।1
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