स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली किन्ही तीन महिलाओ का संक्षिप्त परिचय दीजिये |
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स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली तीन महिलाएं -
रानी लक्ष्मी बाई – रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 में वाराणसी के भदैनी नामक नगर में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था और सब उन्हें प्यार से मनु कहते थे। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई तथा पिता का नाम मोरोपंत था। रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया तब उन्होंने एक पुत्र गोद लिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। झाँसी 1857 के संग्राम में इस वीरांगना ने अंग्रेजों से संग्राम किया और वीरगति को प्राप्त हो गई लेकिन अंग्रेजों को अपने राज्य पर कब्जा नहीं करने दिया।
विजय लक्ष्मी पंडित – विजय लक्ष्मी पंडित का जन्म गांधी-नेहरू परिवार में 18 अगस्त 1900 में हुआ था। वह भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया था। उनका विवाह 1921 में काठियावाड़के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पण्डित से हुआ था। गाँधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आज़ादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया। वह हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर आन्दोलन में जुट जातीं। वो केबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं। 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली वह विश्व की पहली महिला थीं वे राज्यपाल और राजदूत जैसे कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहीं 1 दिसम्बर 1990 को देहरादून के उत्तरी प्रान्त में उनका निधन हो गया।
सरोजिनी नायडू – सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हैदराबाद शहर में हुआ। उनके पिता का अघोरनाथ चट्टोपाध्याय तथा माता का नाम वरदा सुन्दरी था। 19 साल की उम्र में सरोजिनी नायडू की शादी डॉ. एम. गोविंद राजलु नायडू से हुई थी। 1994 में पहली बार सरोजिनी गाँधीजी इंग्लैंड में मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने अपने आप को देश के लिए समर्पित कर दिया। एक कुशल सेनापति की भाँति उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय हर क्षेत्र में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर देश-प्रेम के लिए लोगों को जागृत करती तथी देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती। सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की राज्यपाल थी। 1947 में एशियाई संबंध सम्मेलन की उसकी अध्यक्षता उच्च मूल्यांकन किया गया था। दो साल बाद, 2 मार्च 1949 पर, सरोजिनी नायडू का लखनऊ, उत्तर प्रदेश में निधन हो गया।