स्वतंत्रता के समय रजवाड़ों को क्या निर्णय लेना था ?
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स्वतंत्रता के समय रजवाड़ों को यह निर्णय लेना था कि वह या तो भारत में शामिल हो सकते हैं या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं अथवा एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकते हैं।
जब भारत आजाद हुआ तो उस समय भारत तीन भागों में विभाजित था। एक भाग ब्रिटिश भारत था जो ब्रिटेन के सीधे नियंत्रण में था। दूसरा हिस्सा अलग-अलग छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था, जो 500 से अधिक देशी रियासतें थीं। यह रियासतें पूर्ण स्वतंत्र रियासतें तो थीं लेकिन वैधानिक रूप से ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थी। लेकिन यह ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ही उसके सहायक के रूप में अपना संचालन करती थीं। तीसरे हिस्से में ब्रिटेन के अलावा अन्य यूरोपीय शक्तियों के उपनिवेश थे।
जब भारत स्वतंत्र हुआ तो ब्रिटिश भारत तो सीधे तौर पर भारत राष्ट्र बन गया, लेकिन इन स्वतंत्र रियासतों को यह विकल्प दिया गया कि वह भारत या पाकिस्तान में से जिस में शामिल होना चाहे अथवा अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखना चाहे, वह रख सकती हैं। इन रियासतों में से कुछ ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया, तथा कुछ पाकिस्तान में शामिल हो गई और कुछ स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया। लेकिन बाद में धीरे-धीरे अधिकतर रियासतें भारत में शामिल होती गई। कुछ रियासतें जो या तो स्वतंत्र रहना चाहती थी या पाकिस्तान में शामिल होना चाहती थी, जैसे भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ आदि। हालांकि इन रियासतों की भौलोलिक स्थिति और हिंदू बहुल जनसंख्या भारत के पक्ष में थी, इसलिये कुछ में जनमत संग्रह और कुछ में सैन्य प्रयोग द्वारा ये रियासतें भी भारत में शामिल हो गयीं। कश्मीर रियासत भी मुस्लिम बहुत होने के बावजूद भारत का अभिन्न बन गई।
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