स्वतंत्रता पुकारती कविता का भाव्यार्थ एवं उद्देश्य
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महाकवि जयशंकर प्रसाद रचित स्वतंत्रता पुकारती
राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत गीत है । इसे चंद्रगुप्त नाटक की अलका वीर सैनिकों को
प्रोत्साहित करने हेतु गाती हैं । इसके माध्यम से कवि ने परतंत्र भारत के नागरिकों में स्वतंत्रता प्राप्ति
हेतु राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करने का सुंदर प्रयास किया है।
देश प्रेम की उत्कट भावना को प्रस्तुत करते हुए कवि ने भारतीय वीर सपूतों को उत्साहित करते हुए
ललकारा है कि हे वीर सपूतों
हिमालय की ऊंची चोटी से ज्ञान माई बाड़ी में भारत माता की स्वतंत्रता अपनी रक्षा हेतु पुकार रही है।
प्रशस्त पुण्य पंथ पर चल कर भारतीय
अमर सपूतों को दृढ़ प्रतिज्ञ होने का कवि आह्वान करता है। मातृभूमि की रक्षा हेतु बलिदानी
पथ पर निरंतर कदम बढ़ाती रहने का संदेश यहां अभी व्यस्त है असंग यश और कीर्ति की किरणें
ज्वाला के समानता में कर्तव्य पथ पर बढ़ते
रहने की प्रेरणा दे रहे हैं दुश्मनों के सैन्य समुद्र में बड़वानी और ज्वालामुखी बनकर तुम फूट पढ़ो
और उन्हें भाषण करते हुए विजयश्री को प्राप्त करो राष्ट्रीय गीत के रूप में सम्मानित इस गीत में
कवि ने अपने अतीत के गौरव का स्मरण करते हुए भारतीय वीरों को अदम उत्साह के साथ दुश्मनों
की सेना को पर दलित करते हुए विजयश्री को वरण करने का संदेश दिया है परतंत्रता की बेड़ियों
को तोड़कर फेंकने के लिए यह गीत बहुमूल्य और अचूक मंत्र सिद्ध होता है