Hindi, asked by nandinisakuja681234, 4 months ago

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही भारत की राजनीति के क्षेत्र में पतन का बहुमुखी रूप देखने
को मिल रहा है। स्वतंत्रता की आकांक्षा में भारतीयों ने जो सपने संजोये थे, वे आज राजनीति के
पैतरेबाजों के काले कारनामों के कारण ध्वस्त हो रहे हैं। आज प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक स्तर का
भारतवासी स्वयं को असंतुष्ट, क्षुब्ध और कुंठित अवस्था में पा रहा है, किंतु व्यवस्था के मकड़जाल
में इतना फँसा हुआ है कि चाहकर भी कुछ कर पाने में असमर्थ है। उसकी हालत आज ऐसी
हो गई है कि उसे साँपनाथ अथवा नागनाथ में से ही किसी एक को चुनना अनिवार्य हो गया है।
देश में राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्ति रह गया है, क्योंकि किसी प्रकार एक बार सत्ता
जुड़ जाने के बाद वे विशिष्ट वर्ग में पहुँच जाते हैं, जहाँ अनेक प्रकार की सुविधाएँ और
असीमित अधिकार उन्हें मुफ़्त में ही प्राप्त होने लगते हैं। सत्ता में एक बार भागीदारी प्राप्त कर
लेने पर असीमित सुविधाओं की मुफ़्तखोरी का चस्का लग जाता है।
(1) देश में राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य क्या रह गया है?
(2) भारत की राजनीति के क्षेत्र में पतन का बहुमुखी रूप कब से देखने को मिल रहा है?
(3)व्यवस्था के मकड़जाल में कौन फँसा हुआ है?
(4) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(5) 'स्वतंत्रता' शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?

please tell me ​

Answers

Answered by Subhashree853
3

Answer:

(1) देश में राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य क्या रह गया है?

Ans) देश में राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्ति रह गया है।

(2) भारत की राजनीति के क्षेत्र में पतन का बहुमुखी रूप कब से देखने को मिल रहा है?

Ans) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही भारत की राजनीति के क्षेत्र में पतन का बहुमुखी रूप देखने

(3) व्यवस्था के मकड़जाल में कौन फँसा हुआ है?

Ans) प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक स्तर काभारतवासी व्यवस्था के मकड़जालमें फँसा हुआ है।

(4) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

Ans) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक मेरे हिसाब से "राजनीति ने किया स्वतंत्रता का पतन" होना चाहिए।

(5) 'स्वतंत्रता' शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?

Ans) 'स्वतंत्रता' शब्द में कौन-सा प्रत्यय "ता" है और उपसर्ग "स्व" है।

Explanation:

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही भारत की राजनीति के क्षेत्र में पतन का बहुमुखी रूप देखने को मिल रहा है। स्वतंत्रता की आकांक्षा में भारतीयों ने जो सपने संजोये थे, वे आज राजनीति के पैतरेबाजों के काले कारनामों के कारण ध्वस्त हो रहे हैं। आज प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक स्तर का भारतवासी स्वयं को असंतुष्ट, क्षुब्ध और कुंठित अवस्था में पा रहा है, किंतु व्यवस्था के मकड़जाल में इतना फँसा हुआ है कि चाहकर भी कुछ कर पाने में असमर्थ है। उसकी हालत आज ऐसी हो गई है कि उसे साँपनाथ अथवा नागनाथ में से ही किसी एक को चुनना अनिवार्य हो गया है। देश में राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य सत्ता प्राप्ति रह गया है, क्योंकि किसी प्रकार एक बार सत्ता जुड़ जाने के बाद वे विशिष्ट वर्ग में पहुँच जाते हैं, जहाँ अनेक प्रकार की सुविधाएँ और असीमित अधिकार उन्हें मुफ़्त में ही प्राप्त होने लगते हैं। सत्ता में एक बार भागीदारी प्राप्त कर लेने पर असीमित सुविधाओं की मुफ़्तखोरी का चस्का लग जात है।

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