सावधान या लापरवाह मनुष्य पर भजन की कौन सी बात लागू होते हैं
Answers
भास्कर संवाददाता | नसरुल्लागंज
साधना और सत्कर्म की समाप्ति कभी नहीं होती। जीवन के अंतिम क्षणों तक साधना और सत्कर्म चलते रहते हैं। श्री सतगुरु शुकदेव मुनि ने श्रीमद् भागवत कथा राजा परीक्षित को अंतिम समय तक सुनाई थी। इसलिए मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म शास्त्र की आज्ञानुसार अनुशरण करना चाहिए। क्योंकि जीवन का कोई भी दिन, समय अंतिम हो सकता है। इसलिए मनुष्य का सावधान रहना ही साधना है। उक्ताशय के उद्गार संदलपुर के भागवताचार्य पंडित भगवती प्रसाद ने श्रीमद् भागवत के तीसरे दिन व्यक्त किये।
उन्होंने बताया कि असावधान मनुष्य ही झूठ, चोरी, नशा, धोखा, अन्याय, अनीति के साथ जीवन जी रहा है। मनुष्य अपना पाप छिपाने की कोशिश करता है। उसके ये प्रय| कभी सफल नहीं होते। कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि मेरे पाप देखने वाला कोई भी नहीं है, लेकिन इसकी खबर प्रभु को पलपल रहती है।
Explanation:
साधना और सत्कर्म की समाप्ति कभी नहीं होती। जीवन के अंतिम क्षणों तक साधना और सत्कर्म चलते रहते हैं। श्री सतगुरु शुकदेव मुनि ने श्रीमद् भागवत कथा राजा परीक्षित को अंतिम समय तक सुनाई थी। इसलिए मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म शास्त्र की आज्ञानुसार अनुशरण करना चाहिए। क्योंकि जीवन का कोई भी दिन, समय अंतिम हो सकता है। इसलिए मनुष्य का सावधान रहना ही साधना है। उक्ताशय के उद्गार संदलपुर के भागवताचार्य पंडित भगवती प्रसाद ने श्रीमद् भागवत के तीसरे दिन व्यक्त किये।
उन्होंने बताया कि असावधान मनुष्य ही झूठ, चोरी, नशा, धोखा, अन्याय, अनीति के साथ जीवन जी रहा है। मनुष्य अपना पाप छिपाने की कोशिश करता है। उसके ये प्रय| कभी सफल नहीं होते। कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि मेरे पाप देखने वाला कोई भी नहीं है, लेकिन इसकी खबर प्रभु को पलपल रहती है।