स्वयं प्रकाश की कहानी नेताजी का चश्मा में हालदार साहब का चरित्र चित्रण कीजिये। सबसे सर्वश्रेष्ठ उत्तर को ब्रैंलिएस्ट कस चिन्हित किया जाएगा। जितना जल्दी हो सके इस प्रश्न का उत्तर दीजिये। ये उत्तर एक निबंध के रूप में दीजियेगा।इस प्रश्न का उत्तर मुझे अपने हिंदी के परियोजना कार्य के लिए चाहिए।
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प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक स्वयं प्रकाश ने बताया बताना चाहा है कि वह भाग जो सीमाओं से घिरा हुआ है देश नहीं कहलाता है बल्कि इसके अंदर रहने वाले प्राणियों जीव जंतुओं पेड़-पौधों नदियों पहाड़ों प्राकृतिक सौंदर्य स्थापित होने से देश बनता है और इन सब को समृद्ध करने व इन सब से प्रेम करने की भावना को ही देश-प्रेम कहते हैं कैप्टन चश्मे वाले के माध्यम से लेखक ने उन करोड़ों देशवासियों के योगदान को सजीव रूप प्रदान किया है जो किसी न किसी तरीके से इस देश के निर्माण में अपना योगदान देते हैं ऐसा नहीं केवल बड़े ही देश निर्माण में सहायक होते हैं बच्चे भी इस फोड़कर में अपना योगदान देते हैं.
हालदार साहब को हर 15 दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था कर्जा बहुत बड़ा नहीं था जिससे पक्का मकान कहां जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाजार का जा सके वैसे एक ही बाजार था करते में 1 लड़कों का स्कूल एक लड़कियों का स्कूल एक सीमेंट का छोटा सा कारखाना दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक ठो नगरपालिका भी थी नगर पालिका थी तो कुछ ना कुछ करती भी राजनीति कभी कोई सड़क पक्की करवा देती कभी कबूतर कबूतरों की छतरी वनवादी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया इसी नगर पालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी या कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है बल्कि उसके भी एक छोटे से हिस्से के बारे में है.
हालदार साहब जब उस कस्बे से गुजरते थे और पान वाले की दुकान पर रुके थे तो वह सुभाष चंद्र बोस की संगमरमर की मूर्ति की तरफ एक बार देखते थे
जिसने मूर्ति बनाया था उसने सुभाष चंद्र बोस जी का चश्मा बनाना भूल गया था
1 लोग ने सुभाष चंद्र बोस को असली चश्मा पहना दिया
एक बेहद बूढ़ा माली आशा लंगड़ा आदमी शीतल गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी शिप संदूकची और दूसरे हाथ में एक बांस पर टंगे बहुत से चश्मे लिए अभी अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बस दिखा रहा था तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं फिर लगाता है हालदार साहब चक्कर में पड़ गए पूछना चाहते इसे कैप्टन क्यों कहते हैं क्या यही इसका वास्तविक नाम है वह रोज सुभाष चंद्र बोस का चश्मा बदलता था
I hope it's help you
हालदार साहब को हर 15 दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था कर्जा बहुत बड़ा नहीं था जिससे पक्का मकान कहां जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाजार का जा सके वैसे एक ही बाजार था करते में 1 लड़कों का स्कूल एक लड़कियों का स्कूल एक सीमेंट का छोटा सा कारखाना दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक ठो नगरपालिका भी थी नगर पालिका थी तो कुछ ना कुछ करती भी राजनीति कभी कोई सड़क पक्की करवा देती कभी कबूतर कबूतरों की छतरी वनवादी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया इसी नगर पालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी या कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है बल्कि उसके भी एक छोटे से हिस्से के बारे में है.
हालदार साहब जब उस कस्बे से गुजरते थे और पान वाले की दुकान पर रुके थे तो वह सुभाष चंद्र बोस की संगमरमर की मूर्ति की तरफ एक बार देखते थे
जिसने मूर्ति बनाया था उसने सुभाष चंद्र बोस जी का चश्मा बनाना भूल गया था
1 लोग ने सुभाष चंद्र बोस को असली चश्मा पहना दिया
एक बेहद बूढ़ा माली आशा लंगड़ा आदमी शीतल गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी शिप संदूकची और दूसरे हाथ में एक बांस पर टंगे बहुत से चश्मे लिए अभी अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बस दिखा रहा था तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं फिर लगाता है हालदार साहब चक्कर में पड़ गए पूछना चाहते इसे कैप्टन क्यों कहते हैं क्या यही इसका वास्तविक नाम है वह रोज सुभाष चंद्र बोस का चश्मा बदलता था
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