स्वयं विधाता हो...हे मानव अंतर में विश्वास जगाओ! चलो न मिटते पद चिन्हों पर, अपने रस्ते आप बनाओ! अपनी आत्म ज्योति से पुल्कित, अपने सूरज स्वयं बनजाओ!
mughye iska arth bata do koi.
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स्वयं विधाता हो...हे मानव अंतर में विश्वास जगाओ! चलो न मिटते पद चिन्हों पर, अपने रस्ते आप बनाओ! अपनी आत्म ज्योति से पुल्कित, अपने सूरज स्वयं बनजाओ!
भावार्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहता है कि हमें अपने भाग्य का विधाता खुद बनना है अर्थात हमें अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करना है। हमें अपने भाग्य का निर्माण करने के लिए केवल अपने मन में अपना आत्मविश्वास जगाने की आवश्यकता है। हमें दूसरों के के बनाए रास्ते पर ना चलकर अपने बनाए हुए रास्ते पर चलना है। हमें अपना नया रास्ता खुद बनाना है।
हर मनुष्य के अंदर कोई ना कोई गुण होता है। हमें अपने अंदर के उस गुण को पहचान कर उस गुण को निखारकर स्वयं को इतना सामर्थ्वान बनाना है कि हम उन गुणों के प्रकाश से सूरज के समान चमकने लगें।
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Answer:
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहा है कि हमें अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बनना होगा, अर्थात हमें अपना भाग्य स्वयं बनाना होगा।
Explanation:
स्वयं विधाता बनो... हे मानवीय अंतर में जाग्रत विश्वास! हम अपनी पटरियों में गायब नहीं होंगे, अपना रास्ता खुद बनाओ! अपनी आत्मा के प्रकाश से अनुप्राणित, अपना स्वयं का सूर्य बनाओ!
अर्थ: इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहा है कि हमें अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बनना होगा, अर्थात हमें अपना भाग्य स्वयं बनाना होगा। हमें अपना भाग्य बनाने के लिए बस अपने मन में विश्वास जगाने की जरूरत है। दूसरों के बनाए रास्ते पर चलने के बजाय हमें अपने रास्ते पर चलना चाहिए। हमें अपना नया रास्ता बनाना चाहिए।
हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है। हमें इतना शक्तिशाली बनना होगा कि हम अपने में उस गुण को पहचान सकें और उसे पूर्ण कर सकें, कि हम उन गुणों के प्रकाश से सूर्य की तरह चमकने लगें।
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