स्वयंवर क्या होता है?
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hii
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स्वयंवर प्राचीन काल से प्रचलित एक हिन्दू परंपरा है जिसमे कन्या स्वयं अपना वर चुनती थी और उससे उसका विवाह होता था।
इस बात के प्रमाण हैं कि वैदिक काल में यह प्रथा समाज के चारों वर्णों में प्रचलित और विवाह का प्रारूप था। रामायण और महाभारत काल में भी यह प्रथा राजन्य वर्ग में प्रचलित थी, परन्तु इसका रूप कुछ संकुचित हो गया था। राजन्य कन्या पति का वरण स्वयंवर में करती थी परंतु यह समाज द्वारा मान्यता प्रदान करने के हेतु थी। कन्या को पति के वरण में स्वतंत्रता न थी। पिता की शर्तों के अनुसार पूर्ण योग्यता प्राप्त व्यक्ति ही चुना जा सकता था। पूर्वमध्यकाल में भी इस प्रथा के प्रचलित रहने के प्रमाण मिले हैं, जैसा संयोगिता के स्वयंवर से स्पष्ट है।
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स्वयंवर अर्थात खुद के द्वारा अपने वर की प्राप्ति करना। यह एक पौराणिक प्रथा है। इस प्रथा को हिंदू धर्म में माना गया है। इसके अनुसार कोई भी वधू अपने वर की प्राप्ति के लिए स्वयंवर रखती है। स्वयंवर के कुछ नियम भी है जो वधु के अनुरूप रखा जाता है। जो वर स्वयंवर में उस नियम का पालन कर वधु को प्रसन्न कर देता है उसी से वर की शादी होती है।