Business Studies, asked by ifteshammansuri00, 3 days ago

संयुक्त हिंदू परिवार व्यवसाय मे कितनी प्रणालीया होती है! नाम लिखो​

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Answered by chellurivaibhav
1

Answer:

I need one more BRAINLESTS give me yar Peez I'm begging youu

Answered by vaishnaviaggrawal37
0

Answer:

Hey bro!!

Explanation:

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय एक ऐसा व्यवसाय होता है जिसका स्वामित्व एक संयुक्त हिन्दू परिवार के सदस्यों के पास होता है। इसे हिन्दू अविभाजित परिवार व्यवसाय भी कहते हैं। संगठन का यह स्वरूप हिन्दू अधिनियम के अंतर्गत कार्य करता है तथा उत्तराधिकार अधिनियम से नियंत्रित होता है। संयुक्त हिन्दू परिवार व्यावसायिक संगठन का ऐसा स्वरूप है जिसमें परिवार के पास पूर्वजों की कुछ व्यावसायिक संपत्ति होती है। संपत्ति में हिस्सा केवल पुरुष सदस्यों का होता है। एक सदस्य को पूर्वजों की इस संपत्ति में से हिस्सा अपने पिता, दादा तथा परदादा से मिलता है। अत: तीन अनुक्रमिक पीढ़ियाँ एक साथ विरासत में संपत्ति प्राप्त कर सकती हैं। संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय को केवल पुरुष सदस्य चलाते हैं जो कि व्यवसाय के सहभागी कहलाते हैं। आयु में सबसे बड़े सदस्य को कर्ता कहते हैं।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का अर्थ

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय एक प्रकार की ऐसी व्यावसायिक इकाई हैं जो संयुक्त या अविभाजित हिन्दू परिवारों द्वारा चलायी जाती हैं। परिवार के तीन पीढ़ियों के सदस्य इस व्यवसाय के सदस्य होते हैं। सभी सदस्यों का व्यावसायिक सम्पत्ति के स्वामित्व पर बराबर का अधिकार होता हैं। संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय में सदस्यता का अधिकार परिवार में जन्म से ही प्राप्त होता हैं। अवयस्क को सदस्य बनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता हैं। हिन्दू अधिनियम की ‘दयाभाग प्रणाली’ के अनुसार सभी पुरुष एवं स्त्री सदस्य व्यवसाय के संयुक्त स्वामी होते हैं। परंतु हिन्दू अधिनियम की ‘मिताक्षरा प्रणाली’ के अनुसार परिवार के केवल पुरूष सदस्य ही सहभागी बन सकते हैं। ‘दयाभाग प्रणाली’ पश्चिम बंगाल में लागू होता हैं तथा ‘मिताक्षरा’ देश के बाकी सभी हिस्सों में लागू हैं।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय का एक दृश्य

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की विशेषताएं

स्थापना- इस व्यवसाय की स्थापना के लिये कम से कम दो सदस्य तथा कुछ पैत्रिक संपत्ति होनी चाहिये।

वैधानिक स्थिति- यह व्यवसाय हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956 द्वारा शासित होता हैं।

सदस्यता- इस व्यवसाय के सदस्य केवल परिवार के सदस्य होते हैं। परिवार के बाहर का कोई भी व्यक्ति सदस्य नहीं हो सकता हैं। 

लाभ का बंटवारा- सभी सहभागी सदस्यों की लाभ में बराबर की हिस्सेदारी होती हैं।

प्रबंधन- इस व्यवसाय का प्रबंध परिवार का वरिष्ठ जिसे कर्ता कहते हैं देखता हैं। परिवार के दूसरे सदस्यों को प्रबंधन में भाग लेने का अधिकार नहीं होता। कर्ता को अपनी मर्जी के अनुसार प्रबंधन का अधिकार हैं। कोई भी उसके प्रबंधन के तरीके पर उंगली नहीं उठा सकता हैं।

दायित्व- इसमें कर्ता का दायित्व असीमित होता हैं तथा उसके अन्य सदस्यों का दायित्व उसके अंशों तक सीमित होता हैं।

निरन्तरता-व्यवसाय के किसी सदस्य का मृत्यु होने पर भी व्यवसाय बंद नहीं होता। यह लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहता हैं।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के गुण

निश्चित लाभांष- संयुक्त हिन्दू परिवार सदस्यों का लाभांश निश्चित होता हैं। उन्हें व्यापार को चलाने में भाग न लेने पर भी लाभ प्राप्त होने की गारंटी होती हैं। सदस्यों की बीमारी, कमजोरी, अवयस्क होने पर भी लाभ प्राप्त होता हैं।

शीघ्र निर्णय- व्यापार का प्रबंध कर्ता द्वारा किया जाता हैं। उसे निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता होती हैं। अत: निर्णय “ाीघ्र लिया जा सकता हैं। तथा उसे निर्णय में किसी अन्य सदस्यों की सहभागिता की आवश्यकता नहीं होती हैं।

ज्ञान और अनुभव को बांटना- संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय के युवा सदस्यों को अपने बुजुर्ग सदस्यों से अनुभव व ज्ञान की सीख प्राप्त होती है। इसमें अनुशासन, साहस, आत्मबल, कतर्व्यनिष्ट सहनशील आदि शामिल रहता हैं।

सदस्यों का सीमित दायित्व- कर्ता को छोड़कर सभी सदस्यों का दायित्व उनकी द्वारा लगाई गई पंजू ी अर्थात अंशों तक सीमित रहता हैं।

कर्ता का असीमित दायित्व- यदि व्यापार को लगातार हानि होने के कारण देयताओं में वृद्धि होती हैं तो कर्ता की निजी सपंत्तियों को बेचकर दायित्वों को परू ा किया जा सकता है। अत: कर्ता जवाबदारी पूर्वक व्यापार का संचालन करता हैं।

निरंतर अस्तित्व- संयुक्त हिन्दू परिवार का संचालन निर्बाध गति से निरंतर चलते रहता हैं। कर्ता के मृत्यु होने पर अन्य वरिष्ठ सदस्य द्वारा व्यापार का संचालन किया जाता हैं। अर्थात किसी भी दशा में व्यापार बंद नही होंता। अत: व्यापार का अस्तित्व बना रहता हैं।

कर लाभ- इस व्यापार के प्रत्येक सदस्य को लाभ पर व्यक्तिगत रूप से कर अदा करना पड़ता हैं। अत: कर लाभ की प्राप्ति होती हैं। 

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की सीमाएं  

सीमित संसाधन- संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय में वित्त तथा प्रबंधकीय योग्यता सीमित होती हैं।

प्रेरणा की कमी- कर्ता के अतिरिक्त सदस्यों का दायित्व सीमित तथा लाभ में बराबर का हिस्सा होता हैं। परन्तु प्रबंध में इनकी कोई भागीदारी नहीं होती हैं। अत: इनमें प्रेरणा की कमी होती है।

अधिकारों के दुरूपयोग की संभावना- व्यापार का संचालन करना पूर्णत: कर्ता के हाथ में होता हैं। अत: कभी कभी वह अपने निजी लाभ के लिये अधिकारों का दुरूपयोग करता हैं।

अस्थिरता- संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की निरंतरता पर हमेशा खतरा बना रहता हैं। व्यापार में छोटा सा अनबन भी व्यापार को समाप्त कर सकता हैं।

संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय की उपयुक्तता

जिस परिवार में कई पीढ़ियों से कोई व्यवसाय विशेष होता चला आ रहा हैं और आगे भी परिवार के सदस्य उस व्यापार को चलाना चाहते हैं। वहीं पर संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय उपयुक्त होता हैं। इसके निम्न व्यापार के लिये यह उपयुक्त होता हैं-

जिसमें कम पूंजी की आवश्यकता हो।

कम प्रबंध की आवश्यकता हो।

जिस व्यापार का क्षेत्र सीमित हो।

देशी, बैकिग, लघु उद्योग और शिल्प व्यवसाय के लिये उपयुक्त हैं।

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