संयुक्त परिवार में महिलाओं की परिस्थिति की vivechna करेन
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संयुक्त परिवार में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है
स्वामी विवेकानन्द ने नारी चेतना के संदर्भ में भारतीय स्त्राी को आदर्श बताते हुए कहा-फ्भारत। तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रिायों का आदर्श सीता, सावित्राी, दमयंती है। मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए हैं, अपने व्यक्तित्व सुख के लिये नहीं है। मत भूलना की तुम जन्म से ही माता के लिये बाती स्वरूप रखे गए हो, मत भूलना कि तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छत्राछाया है। फ्वाक्य अधूरा ही रहता, जब तक क्रिया नहीं होती पुरूप ‘परष’ ही रहता है, जब तक प्रिया नहीं होती।य् आदिकाल में बुद्धि के विकास के साथ ही उसने अपने कार्यक्षेत्रा को बढ़ाया साथ ही सम्पति का संग्रहण भी आरम्भ कर दिया। संपति के संग्रहण के साथ ही उसको समस्या आयी कि उसकी संपति की देखभाल कौन करेगा और उसकी मृत्यु के बाद उसका उपभोग कौन करेगा? इसी विचार के साथ विवाह की आवश्कता अनुभव हुई ताकि पुरूष द्वारा उसकी जीवन संगिनी से उत्पन्न संतान ही उसकी उत्तराध्किारी होकर उसके द्वारा छोड़ी गई संपति का उपभोग कर सके। प्राचीन आर्य समाज में इन्हें ‘जानि’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है जन्म देने वाली। आगे चलकर उसे ही बदलकर ‘जननी’ शब्द बना दिया गया।
परिवार के दो स्तम्भ होते हैं- पुरूष और नारी। उन्हीं के संयुक्त प्रयास से परिवार बनते और चलते हैं, किन्तु परिवार की सुव्यवस्था का उत्तरदायित्व नारी के कंधें पर ही आता है। परिवार के लिए नारी शक्ति स्वरूपा है। घर-परिवार का पूरा वातावरण उसी के आचरण पर निर्भर करता है। नारी जन्मदात्राी है। बच्चों का प्रजनन ही नहीं, पालन-पोषण भी उसके हाथ में है। माता के द्वारा बच्चों को जो संस्कार बचपन में दिए जाते हैं वे जीवन भर उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं। जैसे- शिवाजी की माता जीजाबाई ने शिवाजी को एक योग्य रूप में स्थापित किया और आगे चलकर इसी रूप में वे विख्यात हुए। लेकिन शिवाजी के पिता मुस्लिम शासकों के प्रभाव में होने के कारण ऐसा नहीं करना चाहते थे। घर प्रथम पाठशाला है बालक के लिए और माता उसकी प्रथम शिक्षक है। नारी जन्मदात्राी है। समाज का प्रत्येक भावी सदस्य उसकी गोद में पलकर संसार में खड़ा होता है। उसके स्तन का अमृत पीकर पुष्ट होता है। माँ की हंसी से हंसना और माँ की वाणी से बोलना सीखता है। उसके स्नेह के जल से सींचकर पोषित होता है और उसी से अच्छे-बुरे संस्कार लेकर अपने जीवन की दिशा बनाता है।
दशकों के दौरान अलबत्ता काफ़ी सुधार देखा गया है लेकिन पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता (लिंग भेद) और परिवारो में ही महिलाओं के अन्य बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर मामले अब भी सामने आते हैं.
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी – यूएन वीमैन ने मंगलवार को जारी ताज़ा रिपोर्ट में ये निष्कर्ष पेश किए हैं. इस रिपोर्ट को नाम दिया गया है – “विश्व भर की महिलाओं की प्रगति बदलती दुनिया में परिवार”.
रिपोर्ट कहती है कि परिवार एक विविधता वाला ऐसा स्थान होते हैं जहाँ अगर सदस्य चाहें तो लड़के-लड़कियों और महिलाओं व पुरुषों के बीच समानता के बीज आसानी से बोए जा सकते हैं.
यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक फ्यूमज़िले म्लाम्बो ग्यूका ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, “इसके लिए ज़रूरी है कि परिवारों के प्रभावशाली सदस्यों को महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूक होकर उन्हें हर नीति और फ़ैसले के केंद्र में रखना होगा.”