Hindi, asked by surenderpanchal403, 3 months ago

स्यात+नैव अत्र सन्धि करूत संस्कृत मे​

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Answered by npdeepthi12
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Explanation:

नोट- पाठ्यक्रमानुसार इस अध्याय में स्वर संधि के अंतर्गत वृद्धि, यण, अयादि, पूर्वरूपम् तथा व्यंजन संधि के अंतर्गत परसवर्ण, मोऽनुस्वार, जश्त्वम् एवं विसर्ग संधि के अंतर्गत, उत्व, रुत्व, लोप, विसर्ग स्थाने श्, ७, स् आदि संधियों का अध्ययन ही अपेक्षित है। यहाँ उपर्युक्त संधियों के अतिरिक्त पाठ्यपुस्तक में दी गई सभी अन्य संधियों को भी छात्र के अतिरिक्त ज्ञानार्जन के लिये दिया गया है। ]

सन्धिशब्दय व्युत्पत्तिः – सम् उपसर्गपूर्वकात् डुधाञ् (धा) धातो: ‘उपसर्गे धो: किः’ इति सूत्रेण ‘किः’ प्रत्यये कृते सन्धिरिति शब्दो निष्पद्यते । (सम् उपसर्गपूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से ‘‘उपसर्गे धो: किः’ इस सूत्र से ‘किः’ प्रत्यय करने पर ‘सन्धि’ यह शब्द बनता है।)

सन्धिशब्दस्य परिभाषा – ‘वर्णसन्धान सन्धिः’ अर्थात् द्वयोः वर्णयोः परस्परं यत् सन्धानं मेलनं वो भवति तत्सन्धिरिति कथ्यते ।

‘वर्णसन्धान सन्धिः’ अर्थात् दो वर्षों का परस्पर जो सन्धान या मेल होता है वह सन्धि कहा जाता है।)

पाणिनीयपरिभाषा – ‘परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्णानाम् अत्यन्तनिकटता संहिता इति कथ्यते । यथा-सुधी + उपास्यः इत्यत्र ईकार-उकारवर्णयोः अत्यन्तनिकटता अस्ति। एतादृशी वर्णनिकटता एव संस्कृतव्याकरणे संहिता इति कथ्यते । संहितायाः विषये एव सन्धिकार्ये सति ‘सुध्युपास्यः’ इति शब्दसिद्धिर्जायते । (परः सन्निकर्षः संहिता’ अर्थात् वर्षों की अत्यधिक निकटता संहिता कही जाती है। जैसे- ‘सुधी+उपास्यः’ यहाँ पर ‘ईकार’ तथा ‘उकार’ वर्षों की अत्यधिक

Answered by akhil1100
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Answer:

स्यान्नैव

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