saar lekhan...
हमारे साथ हमारा स्वर्ग जुड़ा रहता है। एक साधारण मनुष्य इससे छुटकारा नहीं पा सकता, किंतु मनुष्यता की एक दूसरी माग
भी है। उसे परमार्थ या और सहज शब्दों में परार्थ कह सकते हैं। जब हम कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, तब वहीं से मनुष्य
का समाज के प्रति कर्तव्य और दायित्व आरंभ हो जाता है। स्वयं अपने लिए जीने वाला मनुष्य समाज में कभी आदर नहीं पा सकता। इसीलिए
मनुष्य समाज के लिए जितना उपयोगी सिद्ध होता है, उसकी प्रतिष्ठा समाज में उतनी ही अधिक होती है। मनुष्य की पहचान इससे अलग
कुछ नहीं हो सकती।
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