सब्र का फल 180 to 200 words in hindi
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‘धैर्य और विवेक’ यह एक दूसरे के पूरक हैं। जो लोग धैर्यशील होते हैं, उनकी बुद्घिमत्ता और गंभीरता का स्तर दूसरों से कई गुना अधिक ऊँचा होता हैं। धैर्य एक ऐसा गुण हैं जो चिंता एवं घबराहट भरी स्थिति को क्षण भर में शांति में बदल देता हैं। दिक्कत यह है कि अधिकांश लोग इस गुण के जादुई प्रभाव को नहीं जानते, तभी तो आज जिसे देखो वह अधीर होकर अपने व दूसरों के लिए मुसीबतें खड़ी करता रहता हैं। धैर्यवान के पास रहने वालों को उसकी शांति की आभा का हरदम अहसास होता हैं, उनका चुंबकीय प्रभाव सब पर दिखाई पड़ता है। इसके बावजूद हम सभी कभी न कभी अधीर हो ही जाते हैं और उसका खामियाजा भी भुगतते हैं। हर कोई अपनी अधीरता से मुक्त होना चाहता है लेकिन कोई इसका तरीका नहीं जानता। धैर्य को धारण करना एक रचनात्मक प्रक्रिया है जो हर कोई बड़े आसानी से कर सकता है।
इसके लिए सबसे पहले यह स्वीकार करना जरूरी है कि अपनी अधीरता के निर्माता हम खुद हैं। जैसे हमने निरंतर अधीर रहने की आदत को कईं साल से पाला-पोसा हैं, ठीक उसी तरह हम धैर्य रखने की आदत भी डाल सकते हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत भी हमारे मानस में होती हैं, जहाँ पर पहले हम धैर्य को धारण करते हैं और फिर अपने आत्मविश्वास के बल द्वारा उसे पूर्ण रुप से अपने भीतर उतारते हैं। मनोचिकित्सकों का यह मानना हैं की जब तक हम किसी आदत या संस्कार को अपने मन से स्वीकार या धारण नहीं करते, तब तक वह ऊपरी स्तर तक ही रहता है और हमारे अवचेतन तक नहीं पहुंच पाता। हमारी शांति और हमारी स्वीकृति के मिश्रण से ही संतोष का जन्म होता हैं। जो असंतुष्ट है वह धैर्य नहीं धारण कर पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि हमेशा वर्तमान में रहें, भूत और भविष्य में नहीं।
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