"सब दिन होत न एक समान" "महायज्ञ का पुरस्कार" कहानी के माध्यम से उपरोक्त सूक्ति को सिद्ध करते हुए परोपकारिता के महत्व को लिखिए
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"सब दिन होत न एक समान" "महायज्ञ का पुरस्कार" कहानी के माध्यम से उपरोक्त सूक्ति को सिद्ध करते हुए परोपकारिता के महत्व को निम्न प्रकार से लिखा गया है।
कहानी इस प्रकार है ।
- एक सेठ था, वह बहुत दयालु व परोपकारी स्वभाव का था। अपने द्वार से वह किसी को भी खाली हाथ नहीं भेजता था, विधि का विधान कह लीजिए, सेठ अब धनी नहीं रहा, यहां तक कि उसे स्वयं के परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा था।
- सेठ जहां रहता था , वहां से बारह कोस की दूरी पर कुंदनपुर नाम का कस्बा था, जहां एक धन्ना सेठ रहते थे, सेठ ने मदद मांगने धन्ना सेठ के पास जाने का निर्णय किया, उनकी पत्नी ने रास्ते के लिए चार रोटियां बनाकर दी।
- रास्ते में सेठ जैसे ही खाने बैठ रहा था, सामने एक मरियल कुत्ता दिखाई दिया, सेठ ने उसे वे रोटियां खिला दी व स्वयं पानी पीकर कुंदनपुर पहुंचा।
- वहां पहुंचे तो धन्ना सेठ की पत्नी ने कहा कि यदि आप अपना आज का महायज्ञ बेचने को तैयार है तो हम खरीद लेंगे अन्यथा नहीं , सेठजी इस बात के लिए राजी नहीं हुए व उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा।
- अगले दिन सेठ को अपने घर की दहलीज के नीचे खजाना गड़ा हुआ मिला, उन्होंने एक मरियल कुत्ते को रोटी खिलाई थी, यह उस महायज्ञ का पुरस्कार था।
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