sabhi Nadiya pahad thode Hina todti hai Premchand ke phate joote ke lekhak ne Aisa kyon kaha
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सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है। इस पंक्ति आशय यह है कि समाज में बुराइयों व रूढ़िवादी परम्पराओं को देखकर भी अच्छे विचारों वाले लोग कुछ नहीं करते है| प्रेम चंद जी कहानी में यह वाक्य उन लोगों के लिए जिन लोगों की सोच पुरानी है | जो कुछ कभी नहीं बदलना चाहते वह हमेशा रूढ़िवादी परम्पराओं के सहारे ही जीना चाहते है|
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इस पंक्ति से कवि का यह आशय है कि लोग कुरीतियों एवं परंपराओ को आसानी से ही सवीकार कर उनका पालन करने लगते हैं परंतु कुछ प्रेमचंद जैसे होते हैं जो कि कुरीतियों को सवीकार किये बिना गलत परंपराओ का विरोध करते हैं।
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