सबके हिस्से का आकाश व पूरा चंद्रमा देख लेने से कवि का क्या तात्पर्य है
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और अधिकविनोद कुमार शुक्ल
सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है। और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में ज़िंदा है। सबके हिस्से की हवा वही हवा नहीं है। सबके हिस्से की बनती हुई रोटी नहीं है।
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और अधिकविनोद कुमार शुक्ल
पूरा आकाश है। सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है। और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में ज़िंदा है। ... रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
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